पृष्ठ:सुखशर्वरी.djvu/४३

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उपन्यास। - AAAAAAAAAWAAN ENTENDED पथश्रम तो हवा होगया! उन्होंने बिचारा कि. 'सरला कोई देवी का अवतार है ! अहा ! सुबदना ही अब मेरी गृहणी होगी, इससे देवी सरला-सुन्दरी यहां मुझे ले आई हैं ! वाह ! क्या आज ही रात को ब्याह होगा?" प्रेमदास अति घने सस्मित-कटाक्ष सुवदना के गदन के ऊपर बरसाने लगे! निर्निमेष-लोचनों से मानो वे उसे लील जायगे! सुबदना रसिका होने पर भी सच्चरित्रा गौर परिहासप्रिया थी। यद्यपि अब इसकी पच्चीस वर्ष की उमर होगई थी, तौभी यह नहीं जानती थी कि, 'पुरुषसहवास किस चिड़िया का नाम है ! अस्तु, वह भी प्रेमदास का कुछ प्रेम जानती और उन्हें अच्छी तरह पहचानती थी, इसलिये वह भी प्रेमदास की ओर प्रेमपूर्वक निहारती और मुमकाती थी। सुबदना सरलहदया और दयालु थी, इसलिये उसने सरला और अनाथिनी की उपयुक्त सेवा की। उसने इन लोगों के आनेका-इतनी रात को इस तरह आगे कामतलब नहीं पूछा, यह अच्छा किया; क्यों कि पूछने पर भी यथार्थ उत्तर वह नहीं पाती; क्यों कि सरला और अनाथिनो ने मनोरथ सिद्ध होने के पूर्व अपना कृत्य गुप्त रखने का सङ्कल्प कर लिया था, और ऐसी सक्स्था में ऐसा ही करना बुद्धिमानी का काम है। अनाथिनी चुपचाप स्वयं सोचती थी कि, 'किस तरह सबसे छिप कर पूर्वोक्त भग्नगृह में जाऊं!' क्यों कि सरला को उस भयानक स्थान में संग ले जाने की उसकी इच्छा नहीं थी। उसने मन ही मन यह सङ्कल्प भी किया था कि, 'यदि बंदी जीते हों, और उन्हें स्वयं उद्धार न कर सकं तो फिर यह मुंह लेकर हरिहरप्रसाद - के घर न फिरूंगी और यदि ईश्चर न करे, बंदी को कुछ होगया हो. तो तत्क्षण प्राण त्याग दूंगी।' प्रेमदास ने सोचा कि, 'कोई कोई व्यक्ति नायक के पास नायिका को लाकर माप वहांसे हट जाते हैं, शायद सरला और अनाधिनी का यही मतलब होगा, जो मुझे अकेले बाहर रहने दिया ! ठीक बात है। जान पड़ता है कि भीतर दोनों सोगई होगी, तर तो सुयदना मेरी महिषी है ! तो फिर मैं घर के बाहर क्यों बैठा रहूं ! और सुबदना ही भीतर क्यों है ? मैं पुरुष हूं और