पृष्ठ:सूरसागर.djvu/१०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र । लिया जाय कि मुसल्मानोंके युद्धमें इनके भाइयोंके मारेजानेके पीछेभी इनके पिता जीते रहे और एक दरिद्र अवस्थामें पहुँचे गएथे और उसी समयमें सीदी गाँवमें चले गये हों तो लड़ मिल सक्तीहै। जो हो हमारी भाषा कविताके राजाधिराज सूरदासजी एक इतने बड़े वंशक हैं यह जान कर हमलोगोंको बड़ा आनन्द हुआ। इस विषयमें कोई और विद्वान जो कुछ और विशेष पता लगा सकें तो वहभी उसे पत्र द्वारा प्रकाशित करें । . प्रथम ही प्रथ जागाते में प्रगट अदभुत रूप । ब्रह्मराव विचारि ब्रह्मा राखु नाम अनूप ॥ पान- पय देवी दियो शिव आदि सुर सुख पाय । कहा दुर्गा पुत्र तेरो भयो अति सुख दाय ॥ पार पायन सुरनके पितु सहित स्तुति कीन । तासुवंश प्रशंस में भौ (१) चंद चारु नवीन ॥ भूप

  • दीपनिर्वाण नामक उपन्यासके पहले भागमें मुन्शी उदितनारायण वर्मा ने लिखाहै ।

'कविचन्द यथार्थ में एक प्रसिद्ध राजपूत महाकवि पृथ्वीरानके परमवन्धु थे, और पृथ्वीराजके सहवास ही में सर्वदा रहते थे। चन्दकवि पुस्तकमें कविचन्द्र के नामसे लिखे गये हैं । इङ्गलैण्डके सर फिलिसिड्नी और सर वाल्टर रयाली के समान वे काव्य विषय में निपुण थे, युद्ध विषय में भी वैसेही दूरदर्शी थे, किन्तु काव्य ही उनके यशका चिह्न है । उनका सकल महाकाव्य राजपूत लोगोंके, विशेषतः पृथ्वीराजके कीर्ति कलाप और शूरता पराक्रम में वर्णन हुआ है। सुतराम समस्त आर्यनाति में जैसे रामायण और महाभारत आदरणीय है, ग्रीक (यूनान ) लोगों में जैसे होमर आदरणीयहै, राजपूत लोगों में चन्दकवि का काव्यसमूह भी वैसेही आदरणीयहै । किन्तु चन्दकविका कपोल कल्पित काव्य बहुत कमहै, मकृत वृत्तान्तका भाग अधिक है, । दुःखका विषय यही है कि उनका समस्त जीवनचरित्र कहींभी नहीं पाया जाता और उनके काव्य समूहका अधिकांश मायः माचीन हिन्दीभाषामें छन्दोबद्ध है। चंदकविके विषय में शिवसिंहसरोजमें योंलिखा है:- चंदकवि भाचीन बंदीनन संभल निवासी संवत् ११९६ ए. चंदकवि महाराजा वीसल देव चौहान रनयंभौर वाले के प्राचीन श्वरके औलाद में थे संवत् ११२० में राजा पृथ्वीराज चौहानके पास आये मंत्री औ कवीश्वर दोनों पदको माप्त हुवा भौ पृथ्वीराज रायसा नाम एक ग्रन्थ एक लक्ष श्लोक संख्या भाषा में रचा निस्में ६९ खंड हैं औ जिस्में पुरानी बोली हिंदुवॉकी है इस ग्रन्थ में चंदकवि ने संवत् ११२० से संवत् ११४९ तक पृथ्वीराज का जीवनचरित्र महाकविताईके साथ बहुत छंदों में वर्णन किया है छप्पय छंद तो मानो इसी कविके भाग में थीं जैसा चौपाई छंद श्रीगोसाई तुलसीदासके हिस्से में पड़ी थी इस अंथ में क्षत्रियों की वंशावली और अनेक युद्ध और आबू पहाड़ का माहात्म्य और दिल्ली इत्यादिराजधानियों की शोभा भी क्षत्रियों के स्वभाव चालचलन व्यवहार बहुत विस्तार पूर्वक वर्णन किये हैं ए कवि केवल कवीश्वरही नहीं थे वरन नीतिशास्त्र और चारनके काम काजमें महाशूरवार थे संवत् ११४९ में साथ पृथ्वीरानके एभी मारेगए इन्हींके औलादमें शारं गधर कवि थे जिन्होंने हमीररायसा और हमीरकाव्य भाषामें बनाया है । शारंगधर कवि बंदीनन चंद कवीश्वर वंशी संवत् १३५७ ए माचीन कवि चंद कवीश्वर के वंशमें संवत् १३३० के करीव उत्पन्न हुए थे। और राजा हमीरदेव चौहान रनथंभौर वालेके इहां जो राजा विशालदेवके वंशमें था रहा करते थे इन्होंने हमीररायसा १ और हमीरकाव्य २ ए दो अन्य महाउत्तम बनाएहैं हमीररायसा राना हमीरकी प्रशंसामें लिखा है । दोहा-सिंहगवन सपुरुष वचन, कदलि फरै इक बार । तिरिया तेल हमीर हठ, चढ़े न दूजी वार ॥ १॥ सवैया-तंगन समेत काटि विहित मतंगन सौ रुधिरसों रंगरण मंडल सों भरिगो । सारंग सुकवि भने भूपति भवानीसिंह पारथ समान महाभारत सो करिगो ॥ मारे देखि मुगुल तुरावखान ताहि समय काहू अस न जाना काहू नट सों उचरिगो । वानीगर कैसी दगावानी करि हाथी हाथा हाथी हाथा हाथी ते सहादति उतरिगो ॥ १॥ चंदकविके विषय में पंडित श्रीमोहनलाल विष्णुलाल पंडाने पृथ्वीराजरायसा की टिप्पणी में लिखाहै । चंद वरदई-इस महाकाव्य का ग्रंथकर्ता कि जो हिन्दुओं के अंतिम वादशाह पृथ्वीरान जी चौहान का लंगोटिया मित्र और उनके दरवार का कविराज था। वह भट्ट जाति जो आज कल राव करके कहलाते हैं उसके जगात नामक गोत्र का था और उसके पुरुषा पंजाब देशके लाहौर नगरके रहनेवाले थे और उनकी यजमानी अजमेरके चौहानों की थी । उस की जैसी शूरवीरता इस महाकाव्य से विदित होती है उसका मुख्य कारण यही है कि वह पंजाव देश की अद्यावधि -