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पृष्ठ:सूरसागर.djvu/९

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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र।


वंशको हमलोग औरही दृष्टिसे देखने लगे.वह लिखते हैं “प्रथम जगात"(२)प्रार्थज गोत्र १) वंशमें इनके मूल पुरुष ब्रह्मराव (३) हुए जो बड़े सिद्ध और देवप्रसाद लब्धथे. इनके वंशमें भौचन्द (४) हुआ पृथ्वीराजने (५) जिसको ज्वालादेश दिया। उसके चार पुत्र जिनमें पहिला राजा हुवा दूसरा गुणचन्द्र उसका पुत्र शीलचन्द्र उसका वीरचन्द्र यह वीरचंद्र रत्नभ्रमर ( रनथम्भौर ) के राजा प्रसिद्ध हम्मीर (६) के साथ खेलताथा। इनके वंशमें हरिचन्द्र (७) हुआ उसके पुत्रके ७ पुत्र हुए जिनमें सबसे छोटा (कवि लिखताहै ) मैं सूरतचन्द्रथा मेरे ६ भाई मुसल्मानोंके युद्ध (८) में मारे गए । मैं अन्धा कुबुद्धिथा। एक दिन कुंए में गिरपड़ा तो सात दिन तक उस (अन्धे) कुंए में पड़ा रहा किसीने न निकाला सातवें दिन भगवानने निकाला और अपने स्वरूपका (नेत्रदेकर ) दर्शन कराया और मुझसे बोले कि वर मांग मैंने वर मांगा कि आपका रूपदेखकर अब और रूप न देखू और मुझको दृढभक्ति मिलै और शत्रुओं (१) का नाशहो । भगवन् ने कहा ऐसाही होगा तू सब विद्या में निपुणं होगा प्रबल दक्षिणके ब्राह्मण (१०) कुलसे शत्रुका नाश होगा और मेरा नाम सूरजदास, सूर,सूरश्याम इत्यादि रखकर भगवान अंतर्ध्यान होगये । मैं ब्रजमें बसने लगा फिर गोसाई (११)ने मेरी अष्ट (१२)छापमें थापनाकी इत्यादि । इस लेखसे और लेख अशुद्ध मालूम होते हैं क्योंकि जैसे चौरासी वार्ताकी टीकामें लिखाहै कि दिल्लीके पास सीही गाँवमें इनका दरिद्र माता पिताके घर जन्म हुआ यह बात नहीं आई।यह एक बड़े कुलमें उत्पन्न थे और आगरे वा गोपाचलमें इनका जन्म हुआ हो यह मान


  • (२)" प्रथजागात "-इस जाति वा गोत्रके सारस्वत ब्राह्मण सुननेमें नहीं आए । पंडित राधाकृष्ण संगृहीत सारस्वत ब्राह्मणोकि जातिमालामें " प्रथजागात " "प्रथ"-वा " जगात" नामके कोई सारस्वत ब्राह्मणं नहीं होते। 'जगा वा जगातिया' तो भाटको कहतेहैं।
  • (३) ब्रह्मराव नामसे भी सन्देह होताहै कि यह पुरुष या तो राजा रहाहो या भाट।
  • (४) भौ का शब्द हुआ अर्थमें लीजिए तो केवल चन्द्रनामथा। चन्द्र नामका एक कवि पृथ्वीराज की सभामेथा। आश्चर्य!!!
  • (५) पृथ्वीराजका काल सन् ११७६ ।
  • (६) हम्मीर चौहान. भीमदेवका पुत्र था । रणथंभौरके किलेमें इसीकी रानी इसके अलाउद्दीन ( दुष्ट) के हाथसे मारेजाने पर सहस्रावधि स्त्रीके साथ सती हुईथीं । इसका वीरत्व यश सर्वसाधारणमें हमीर हठके नामसे प्रसिद्ध है। (तिरिया तेल, हमीरहठ, चढे न दूनीवार ) इसीकी स्तुतिमें अनेक कवियोंने वीररसके सुन्दर श्लोक बनाएहैं । मुश्चति मुञ्चति कोष भजति च भजति प्रकम्य मरिवर्यम्। हम्मीरवीर खड्नेत्यजति च त्यजति समामाशुः । इसका समय सन्१२९० । (एक हमीर सन् ११९२ में भी हुआहै )।
  • (७) सम्भवहै कि हरिचन्दके पुत्र का नाम रामचन्द्र रहाहो जिसे वैष्णवोंने अपनी रीतिके अनुसार रामदास कर लियाहो।।
  • (८) उस समय तुग़लकों और मुग़लों का युद्ध होताथा ॥
  • (९) शत्रुओंसे लौकिक अर्थ लीजिए तो मुगलोंका कुल ( इससे सम्भव होताहै कि इनके पूर्व पुरुष सदासे राजाओंका आश्रय करके मुसल्मानोंको शत्रु समझते थे या तुगलोंके आश्रित थे इससे मुगलोंको शत्रु समझते थे) यदि अलौकिक अर्थ लीजिए तो काम, क्रोधादि ।
  • (१०) सेवा जीके सहायक पेशवाका कुल जिसने पीछे मुसल्मानोंका नाश किया ( अलौकिक अर्थ लीजिए तो सरदास

जीके गुरु श्रीवल्लभाचार्य दक्षिण ब्राह्मण कुलकेथे।

  • (११)" गोसाई."- श्रीविठ्ठलनाथनी-श्रीवल्लभाचार्यके पुत्र।
  • (१२) अष्टछाप-यथा-सूरदास, कुम्भनदास, परमानन्ददास, और कृष्णदास ये चार महात्मा आचार्य जीके सेवक और छीत स्वामि गोविन्दस्वामि, चतुरभुनदास और नन्ददास ये गोसाँई जीके सेवक । ये आठों महाकविथे ।