दो॰-ह्रै विरक्त संसारते, दिव्यदृष्टि हरि ध्यान । सूरदास करते रहे, निशि दिन विदित जहान॥३॥
सूरदास इतिहास बहु, परचै अहैं अनेक । जानि लेहु सब संतजन, कहौं नेक सविवेक ॥१॥
कवित्त-कविकुल कोक कंज पाइकै किरिनि काव्य विकसे चिनोदित ह्रै नेरे और दूरके।
सूखिगो अज्ञानपंक मन्दभो मयंक मोह विपय विकार अन्धकार मिटै कूरके ॥ हरिकी विमुखताई
रजनी पराई गई मूक भये कुकवि उलूक रस झुकके । छायो तेज पुहुमिमें रघुराज रूर हरिजन
जीव मूर सूर उदय होत सूरके ॥१॥ मतिराम* (१)भूषण (२) बिहारी(३) नीलकंठ(४) गंग (५)बेनी(६) शंभु(७)तोप (८)चिंतामणि(९)कालिदास(१०)की। ठाकुर(११)नेवाज(१२) सैनापति(१३) शुकदेव(१४) देव(१५) पजन(१६)घनआनंद (१७) घनश्यामदास(१८) की॥सुंदर(१९) मुरारि(२०) बोधा(२१) श्रीपति हूं (२२)दयानिधि(२३) युगल(२४)कविंद(२५)त्यों गोविंद (२६) केशवदास(२७)की।भने रघुराज और कविन अनूठी उक्ति मोहिं लगी जूठी जानि जूंठी सूरदास की॥२॥अखिल अनूठी उक्ति युक्ति नहिं झूठी नेकु सुधाहूं ते सरस सरस को सुनावतो।उद्धृत विराग भाग सहित अनेक राग हरिको अदाग अनुराग को सिखावतो॥ जगत उजागर अमलपद आगर सुनट नागर ध्याय सूर-सागर को गावतो। भापै रघुराज राधा माधवको रास रस कौन प्रगटावतो जो सूर नहिं आवतो॥३॥साह सुन्यो सुरनसे वेगही बुलायो डिल्ली पूछयो कौन हो तू सूर को कह्रो पूंछो बेटी सों।
साह को जानो कैसे सूर कह्यो जंघ तिल साह पुछवायो सो तुरत एक चेटीसों॥ कन्या कह्यो कहत तुरंत ही शरीर छूटी हठपरे कहि तनु तजि हरि भेटी सों। भने रघुराज साह सूर पद शिर-नाथ पूछ हरिदास मोरि भवभीत मेटीसों॥४॥ गोकुल में रास होत राधा जूने मान कीन्हों हरि मान मोरिवे को उद्धवे पठायो है। जानि गुरुमान कह्यो नेसुक कटुक वैन दीनी वृपभानुसुता शाप को पछायो है॥ धारिये मनुज तनु तारिये जगत जाइ सकल सुनाइये जो रास रस भायो है। भने रघुराज सोई उद्धव अवनी में आइ रसिक शिरोमणि सो सूर कहवायो है॥५॥
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र ने 'शिवसिंहसरोज' पढ़नेके समय में जिन जिन कवियोंके विषय में कुछ लिखा है उनमें अकबर और गंगके इतिहास पर अपनी राय नाम मात्रको लिखी है उसे नीचे प्रकाश करता हूं।
अकबर।
अकबर बादशाह दिल्ली सं० १५८४में हुए इनके हालात में अकबरनामा१आईनअकबरी २ तव काहत अकबरी,३ तारीख अबदुल्कादिर बदाउनी४इत्यादि बड़ी बड़ी किताबैं लिखी गई हैं जिनसे इस महाप्रतापी बादशाह का जीवनचरित्र साफ़ साफ़ प्रगट होताहै इहां केवल हमको उनकी कविता का वर्णन करना अवश्य है सो हमको कोई ग्रंथ इनका नहीं मिला दो चार कवित्त जो मिले हैं सो हमने लिखाहै जहांगीर बादशाहने अपने जीवनचरित्र की किताब तुजुक जहांगीरी में लिखाहै कि अकबर बादशाह कुछ पढ़े लिखे न थे परंतु मौलाना अबदुल्कादिर की किताव से प्रगट है कि अकबर शाह संस्कृत महाभारत को एक रात आपही उल्था कराने बैठे और सुल्तान मोहम्मद थानेसरी औ खुदमौलाना बदायूनी औ शेख फै़जी ने जहां जहां कुछ आशय छोड़ दिया था उसे
* अंकवाले कवियोंका वर्णन आगे किया जायगां।