पृष्ठ:सूरसागर.djvu/१५

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"श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र

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. फिर तर्जुमा होनेको हुकुम दिया इनके समय में नरहरि १ करन २ हाल ३ खानखाना ४ वीखरद गंग इत्यादि बड़े बड़े कवि हुए हैं परंतु खास जे कवि नौकर थे उनके नाम इस कवित्त से प्रगट होंगे। सवैया-पूषी प्रसिद्ध पुरंदर ब्रह्म सुधारस अमृत अमृत वानी । गोकुल गोप गुपाल गणेश गुणी गुणसागर गंग सुज्ञानी ॥ जोध जगन्नज में जगदीश जगामग जैत जगत है जानी। कोर. ___ अकबर सैन कथी एतने मिलिकै कविता जु बखानी॥१॥ श्रीगोसाई तुलसीदास तो दरवार में हाज़िर नहीं हुए सूरदास जी औ वावा रामदास उन के पिता गानवालोंमें नौकर थे । जैसा कि आईन अकवरी में लिखाहै केशवदास जी उस समय में इनके मंत्री श्री राजा वीरवरके दरवार में हाज़िर हुये थे जब इन्द्रजीत राजा उडछा बुंदे- लखंडी प्रवीन राइ पातुरीके लिये बादशाही कोपमें था। दोहा-जाको यश है जगतमें, जगत सराहे जाहि ।ताको जीवन सफलहै, कहत अकबर शाहि॥॥ गंग। गंगकवि (गंगाप्रसाद ब्राह्मण एकनौर जिला इटावा अथवा बंदीनन दिल्लीवाल) स० १६९५में हुए गंगकविको हम सुनते रहे कि दिल्ली के वंदीजन हैं औ अकबर बादशाहके इहां थे जैसा किसी कविने बंदीजनों की प्रशंसा में यह कवित्त लिखा है! कवित्त-प्रथम विधाता ते प्रगट भये बंदीजन पुनि पृथु यज्ञ ते प्रकाश सरसात है। " माने सुत शौनकन सुनत पुराण रहे यशको बखाने महासुख बरसात है। चंद चौहानके केदार गोरी साह जूके गंग अकबरके वखाने गुण गात है। काग कैसे मास अजनास धन भाटनको लूटि धरै जाको खुरा खोज मिटि जातहै ॥ १ ॥ परंतु अब जो हमने यांचातौ विदित हुवा कि गंग कवि एकनौर गांउ जिला इटावाके ब्राह्मणथे जब गंग मरगये हैं औ जैनखा हाकिम ने एक नौर में कछु जुलुम किया तब गंग जीके पुत्र ने जहांगीर शाहके इहाँ यह कवित्त अरजीके तौर पर दिया है।जैनखां जुनारदार मारे एक नौरके । जुनारदार फारसीमें जनेऊ रखनेवालेका नामहै लेकिन खास ब्राह्मणहीको जुनारदार कहतेहैं खैर जो हो हम को इस बातमें बहुत लिखनेसे कछु मतलव नहीं गंगजी महानकविथे राजा वीरबलने गंगको इस छप्पयों (भ्रमर भ्रमत ) एक लक्ष रुपया इनाम दिया इसी प्रकारसे अकवर, जहाँगीर, बीरवर, खानखाना, मानसिंह सवाई इत्यादि साने गंगको बहुत दान मान दियाहै। भक्त विनोद-कवि मियांसिंह कृतसे। . दो-करन विमलमनहरनतम,दमन त्रिविध दुख दोषाभक्ति महातम करहुँकल,कथन ललितप्रदमोष नाशन कुमतिकृतांतभय, भासन भानु प्रवोधामुमति विकासन भक्तजन, दलन मदनमदक्रोध चौपाई-कृष्ण दैव जब जनन उवारा । मथुरा लीन ललित अवतारा। . किए कृपालु चरित जस चारू । सो मनहरन विदित संसारू॥॥ • तव यादव इक भक्त प्रवीना । कृष्ण सरोज चरण मन लीना। सूर नयन बर वंश उजागर । उपज्यो. भक्त सृष्ट गुणसांगर ॥२॥...

  • श्रीतुलसीदासजी का काल यह नहीं है। हरिश्चंद्र ·। श्रीसूरदास कहीं नौकर न हुए।

हरिश्चंद्र सूरदास नीके पद से मिलाना । हरिश्चंद्र। . ..