पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२११

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meenacom (११८) - सूरसागर। मुनि जनियां ॥ ताको नँदरानी मुख धुवतिहै लिए कनियां सहसानन गुणगाने गनत नहीं बनियां सूरश्याम देखि सब भूली गोप धनिया ॥२९॥ यशुमति दधि मथन करति वैठी वरधाम अजिर ठाढे हरि हँसत नान्हीसी दांतआन छबिछाज।।चितवत चित लेइ चोराई सोभा वरणी नजाई मुनि नके मनहरनको मनमोहनि दुलसाजै जननि कहति नाचौ तुम देहौं नवनीत मोहन रुनुकु झुनुकु चलत पांइन चायन नूपुर वाजै । गावत गुण सूरदास यशवाढ्यो भुव अकाश नाचत त्रैलोक नाथ माखनकेकाजै॥३०॥ प्रात समय दधि मथत यशोदा अति सुख कमलनयन गुणगावति । अतिहिमधुरगति कंठ सुघर अति नंदसुवन चित हितहि करावति ॥ नीलवसन तनु सजल जलद मानौ दामिनि विविभुजदंड चलावति।चंद्रवदन लट लटकि छबीली मनहुँ अमृतरस राहु चुरावति ॥ गोरस मथत नाद इक उपजत किकिनि धुनि मुनि श्रवण रमावति।सूरश्याम अचराधरे गढ़े काम कसौटी कसिदेखरावति ॥३१॥ ललित छोटी छोटी गुडियां अंगुरिया छोटी छवीली नख ज्योति मोती मानौ कंजदलनपर ॥ ललित आंगन खेलै ठुमुकु ठुमुकु डोलै झुनक झुनुक वाजै पैंजनी मृदुमुखराकिंकिनी कलित कटि हाटक रतन जटित मृदु कर कमल पहुँचिया रुचिर वापियरी पिछौरी झीनी और उपमाभीनीवालक दामिनि मानौं ओदेवारो वारिधर ॥ उरवधनहा कंठकठुला झडूले वार वेनी लटकन मस विंदु मुनि मनहर॥ अंजन रंजित नयना चितवनि चितचोरैमुखसोभा परवारौं अमित असमसर । चुटुकी वजावति नचावति नंद घरनि वालकेलि गावत मल्हावति प्रेम सुवर॥ किलकि किलकि हँसै दै दतुरिया लसै सूरदास मनवस तोतरे वचनवर ॥३२॥ राग विलावलीमाधव तनकसे वदन तनकसे चरन भुज तनकसे करन पर तनकमाखनातनकसीवातजोः || कहत तनकसे तनक रिझि रहे तनक सुधनातिनक कपोल तनकसी दंतुलिया तनक अधर अरु तनक हँसन पर हरत होमनातनकहि तनक जो सूर निकट आवै तनक कृपाकरिदीजे तनक सर नन|माधव तनक चरन अरु तनक तनक भुज तनक बदन वोले तनकसे बोलातनक कपोल तन कसी प॑तिया तनक हँसन पर लेतही मन मोल ॥ तनक करन पर तनक माखन लिये देखत तनक जाके सकल भुअन । तनक सुनै सुयश पावत परमगति तनक कहत तासों नंदसुवन ॥ तनक रीझ पर देत सकल तन तनक चितै चितवन चितके हरनातनकहि तनक तनक करिआवै सूर तनक तनक दीजै तनक सरन॥३३॥३४॥ कान्हरो ॥ गोद खिलावति कान्हसुनो बडभागिनिहो ... नंदरानी ॥ आनंदकी निधि मुख लालाको ताहि निरखि निशि बासर सोतो छवि क्योंहूं नजाति ॥ बखानी॥ गुणअपार बहु विस्तार कहि न परत निगमागमवानी। सूरदास प्रभुको लिये यशुमति गोदखिलावति चिते मुसुक्यानी॥ ३५॥ राग गौरी ॥ मेरेमाई श्याम मनोहर जीवनि।।निरखि नयन भूलेते वदन छबि मधुर हँसनि पैपीवनि । कुंतल कुटिल मकर कुंडल व नैनीवलोकनि बैंक। सिंधुसुधाते निकनि नयो शशि.राजत मनौ मृगअंक । सोभित सुमन मयूर चंद्रिका नीलनलिन तनुश्याम मानहुनक्षत्र समेत इंद्र धनु सुभग मेव अभिराम।।परमकुशलकोविद लीलानट मुसुकनि:- मन हरिलेत । कृपा कटाक्ष कमल कर फेरत सूर जननि सुखदेत ॥३६॥ आसावरी ॥ वेद कमल मुख परसत जननी अंक लिये सुतरति करि श्याम । परमसुभग जु अरुन कोमल रुचि. आनंदित मनु पूरणकाम ॥ आलंवित पृष्ट बल सुंदर परस्पर चितवत हरि राम। झांकि उझकि हँसत दोऊ सुत प्रेम मगन भई इकटक जाम ॥ देखिस्वरूप नरही कछू सुधि टूरी तवहिं कंठते दाम ।। सूरदास प्रभु शिशुलीला रस आवहु नंद देखि सुखधाम ॥ ३७॥ रागगौरी ॥ सोभा मेरे श्यामहिमैं