पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२३५

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- (१४२) सूरसागर। आवत क्यों परिसात । लै लै लकुट कठिन अपने कर परशति कोमल गात । देखि जुआंसू गिरत नैनते शोभितहैं टरिजात । मुक्ता मनौ चुवत खग खंजन चोचि पुठी न समात ॥ उरनिडोल डोल तहैं इहि विधि निरखि सुभुद सुनि वात । मानहुँ सूर सकेत शरासन उडि को अकुलात ॥२२॥ रामकली ।। यशोदा यह न बूझिको काम । कमल नयनकी भुजा देखि धौं तै वधिहैं दाम ॥ पूतहुते प्रीतम नहि कोऊ कुल दीपक मणिधाम । हरि पर वार डारु सब तन मन धन गोरस अरु ग्राम। दिखियत कमल वदन कुभिलानो तू निमौहीवाम। तू वैठी मंदिरसुख छाहै सुत दुख पावत धाम आति सुकुमार मनोहर मूरति ताहि करत तुम ताम । एई हैं सब ब्रजके जीवन सुख पावत लिए नाम ॥ इह सुनि ग्वालि जगतके वोहित पतितपावनहै नामासूरदास प्रभु भक्तनके वशहैं जगतके विश्राम ॥ २३ ॥ धनाश्री ॥ ऐसी रिस तोको नंदरानी । भली बुद्धि तेरे जिय उपजी वडी वैस अब भई सयानी ।। ढोटा एक भए कैसेहुँ करि कौन कौन कर वर विधि भानी । कर्म कर्म करि अवलौं उपरयो ताको मारि पितरदै पानीको निर्दयी रहै तेरे घरको तेरे संग वैठे आनी।सुनह सुर कहि कहि पचिहारी युक्ती चली घरहि विरुझानी ॥ २४ ॥ रागसारग॥ हलधरसों कहि ग्वालि सुनायो। प्रातहिते तुमरो लघुभैयायशुमति उखल वांधि लगायो।काहूके लरिकहि हार मारयो भोरहिआनि तिनहि गोहरायो।तवहीं ते बांधे हार बैठे सो हम तुमको आनि जनायो।हम वरजी वरजो नहि मानत सुनतहिवलआतुरलैधायो।सुरश्याम बाँधेऊखल गहि माता डरत न अतिहिसायो२५ राग सारंग ॥ यहसुनिकै हलधर तहँ धाए।देखिश्याम ऊखल सोंवधेितवहींदोउ लोचनभरि आए।।मैं वरज्यों कैचार कन्हैया भली करी दोउ हाथ बँधाए।अजहूँ छोड़ोगे लँगराई दोउ कर जोरि जननि पै आए॥श्यामहिं छोरै मोहे वरु वांधो निकसत सगुन भले नहिं पाए । मेरे प्राण जीवनधन कान्हा तिनको भुज मोहि बंधे देखाए ॥ मातासों कह करौं ढिठाई शेप रूप कहि नाम सुनाए । सूरदास तव कहत यशोदा दोउ भैया तुम इकमत भाए॥२६॥ राग सारंग ॥ एतौ कियो तु कहारी मैया । कौन काज धन दूध दही यह क्षोभ करायो कन्हैया । आये सिखावन सवै पराये स्यानी ग्वालि वोरैया। दिन दिन देन उरहनो आवै । ढुकि लुकि करत लरैया ॥ सूरदास सुंदर हिलगाने वह वलभद्र औ भैया ॥२७॥ केदारो ॥ काहेको कलहु नाघ्यो दारुण दाँवरि बांध्यो कठिन लकुट लै त्रास्यो मेरो भैया । नाहीं कसकत मन निरीख कोमल तन तनक दधि काज भलोरी तू मैया ॥ हौतौ न भयो घर देखतो तेरी यो अरि फोरतो बासन सब जानत वलैया। सूरदास सहित हरि लोचन आयएँ भरि वलहूको वल जाको सोई कन्हैया ॥२८॥राग बिलावल । काहेको यशोदा मैयात्रास्यौहै वारो कन्हैया मोहन मेरो भैया कितनो दधि पियतौ । हौंतो न भयो घर साटी दीनी सर सर बांध्यो कर जेवरी नीके कैसे देखि जियतौ ॥ गोपालतौ सवनिप्यारौ ताकों तें कीनो प्रहारोजाकोहै मोको गारो अजुगुत कियतौ । ठाढ़ो बांधे बलवीर नैनोंसे ढरतु नीर हरिजूते प्यारो तोको दूध दही वियतौ ॥ सूरदास गिरिधरन धरनीधर हलधर यह छवि सदाई रहौ मेरेजियतौ ॥२९॥ सोरठा ॥ यशोदा तोहि बाँधे क्यों आयो । कसको नाहिं नेकु तनु तेरो यह कहि काहि खिझायो॥ शिव विरांचे महिमा नहिं जानत सो गाइनसँग धायो । ताते तू पहिचानति नाहीं कौन पुण्यते पायो।इतनी कहत रसिकमणि तवहीं रोप सहित वल धायो। जननी छाँडि और जो होती करत आपना भायो । कहा भयो जो घरके लरिका चोरी माखन खायो । अपने कर सब बंधन खोले प्रेम सहित उर लायो ॥ सरस वचन मनोहर कहि कहि अनुज शूल विसरायो। सूरदास प्रभु भक्तनके हित निजकर आप बँधायो॥३०॥