पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२४४

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PRE- - दशमस्कन्ध-१० (१५१) एकमें मारयो दनुज प्रचारी ॥ हरि हँसि बोले वैन संग जो तुम नहिं होते । तुम सब सब किय सहाय भयो तव कारज मोते।हमहुँ तुमहुँ मिलि वैठिकै वन भोजीकरिये जाइविंशीवट भोजन बहुत यशुमति दियो पठाइ । ग्वाल परमसुख पाइ कोटि मुख करत प्रशंसा । कहा बहुत जोभए सपूततौ एकै वंसा ॥ चढि विमान सुर देखहीं गगन रहे भरि छाइ । जै जै ध्वनि नभ करतहैं हरपि पुहुप वरपाइब्रह्मसुनी यह वात अमर घर घरनि कहानी।गोकुल लीनौ जनम कौन यह मैं नहिं जानी॥ देखौं इनका खोजलै शोच परयो मनमाह।सूरश्याम ग्वालन लिये चले वंशीवटकी छाहँ ॥७३॥६॥ अथ तेरह अध्याय ब्रह्मा वत्स बालक हरन ॥ राग धनाश्री ॥ हरप भये नंदलाल बैठि तरुछाँहकी ॥ ग्वाल पालसंग करतकोलाहल छाँहकी ॥ वंशीवट अति सुखद और द्रम पास चहूंहै । सखालिए तहां गए धेनु वन चरति कहूंहै ॥ वैठिगए सुखपाइकै ग्वाल बाल लिये साथ । अति आनंद पुलकित हिये गावतहैं गुणगाथ ॥ १॥ अहिर लिये मधु छाक तुरत वृंदावन आए। व्यंजन सहस प्रकार यशोदा वनहि पठाए ॥ श्याम कही वन चलतही मातासों समुझाइ । उतनेवै आए सबै देखतही सुखपाइ ॥ २ ॥ कान्ह देखि मधु छाक पुलकि अंग अंग बढ़ायो । हरि हँसि पोले तबै प्रेमसों जननि पठायो । नीके पहुँचे आनिकै भला वनो संयोग । वार पार कहि सवनका आजु करौ सुखभोग ॥ ३ ॥ वनभोजी विधि करत कमलके पात मँगाये। तोरे पात पलाश सरस दोना बहुल्याये। भांति भांति भोजन धरे दधिलवनी मिष्टाना वनफर लये मँगाइकै लागे भोजन खान ॥ ४॥ वन भोजन हरि करत संग मिलि सुबल सुदामा। श्याम कुँवर परसान्न महर सुत अरु श्रीदामा। श्याम सवै मिलि खातहैं लै लै कौर छुड़ाइ। औरन देत वुलाइके डहकि आपु सुख नाइ॥५॥ब्रह्मा देखि विचार सृष्टि कोइ नई चलाई । मुहिं पठयो जिहि सौंपि ताहि कहिहौं काजाई ।। देखौं धौं यह कौनहै वाल वत्स हरिलेउँ । ब्रह्मलोक ले जाउँगो यह बुधि करि दुख दे ॥ ६॥ अंतर्यामी नाथ तुरत विधि मनकी जानी । वालक दै दिये पठै धेनु वन कहूं हिरानी॥ जहां तहां वन ढूंढिक फिरि आये हरि पास । श्याम सखन वैगरि करि आपुन गये उदास || हरिलै बालक वत्स ब्रह्मलोकहि पहुँचाये। फिरि आवै जो कान्ह कहूं कोट नाहिन पाये ॥ प्रभु तवहीं जानोयही विधि लैगयो चुराइ । जोजेहि रँग जेहि रूपको चालक वच्छ बनाइ । ॥८॥ ताते कीन्हे और ब्रह्म हृद नाल उपायो। अपनो करि तेहि जानि कियो ताका मन भायो । उद्धारन मारन समर्थ मन हरि कीनो ज्ञान ।अनजाने विधि यह करी नये रचे भगवान।।९।।उहै वृद्धि उहै प्रकृति वह पौरुष तनसबके ।उहै नाउ हि भाउ धेनु वछरा मिलि रखके वोश्याम कह्यो सव सख नको ल्यावह गोधन फेरि। संध्याको आगम भयोव्रजतन हांको परि॥१०॥सुनत ग्वाल ले धेनु चले वजवृंदावनते । कान्हहि बालक जानि डरे सब ग्वाल मनहिते।मध्य कियेले श्याम को सखा भये चहुँ पास । वच्छ धेनु आगे किये आवत करत विलास ॥११॥ वाजत वेणु विपाण सबै अपने रँग गावत मुरली ध्वनि गौरंभ चलत पग धूरि उडावत । मोरमुकुट शिर सोहई वनमाला पटपीत ॥ गोरज मुखपर सोहई मनहु चंद्रकण शीत ॥१२॥ देखि हरपि वजनारि श्यामपर तन मन वारति । इकट रूप निहारि रही मेटति चित आरति ॥ कहा कहै छवि आजुकी मुख मंडित सुर धूरि । मानहुँ | पूरन चंद्रमा कुहू रहयो आपूरि ॥ १३ ॥ गोकुल पहुँचे जाइ गये बालक अपने घर । | गोसुत अरु नर नारि मिली अतिहेत लाइ गर । प्रेम सहित वे मिलत, जेउ सुत जायो आजु । यशुमति मिलि सुतसों कहति रैनिं करत केहि काजु ॥ १४॥ मैं घर आवन कहाँ सखा सँग कोउ -