पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२५

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D श्रीसुरदासजीका जीवनचरित्र । ऐसी कितनीक वनाऊंप्राणपतिसुमिरनहेभयोआडो।अबकीवेरनिवारलेउप्रभु सूरपतित काटाडो। फिर दूसरो और पद गायो सोपद। रागधनाश्री-प्रभुमैं सब पतितनको टीको । और पतित सब द्यौस चारके मैंतो जन्मतहीको ॥१॥ वधिक अजामिल गणिका तारीऔर पूतनाहीको। मोहिंछांडितुम और उधारे मिटेशूल कैसेजीको कोऊ न समरथ सेव करनको बैंचकहतहाँलीको मरियतलाज सूरपतितनमेंकहत सवनमेंनीको. ऐसो पद श्रीआचार्यजी महाप्रभूनके आगे सूरदासजीने गायो सो सुनिके श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने कह्यो जो सूरद्वैके ऐसो काहेको पिपियातहै कछु भगवतु लीला वर्णन करि तव सूर- दासने कह्यो जो महाराज हों तो समझत नाहीं तब श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने कहो कि जा स्नान करिआउ हम तोको समझावेंगे तब सूरदासजी स्नान करिआये तवं श्रीमहाप्रभूजीने प्रथम सूर- दासको नाम सुनायो पाछे समर्पण करवायो और दशमस्कन्धकी अनुक्रमणिका कही सो ताते सब दोष दूर भये ताते सूरदासजीको नवधाभक्ति सिद्धभई तव सूरदासनीने भगवत् लीला वर्णन करी अनुक्रमणिकाते सम्पूर्ण लीला फुरी सो क्यों जानिये सो दशमस्कन्धकी सुबोधनीजी में मंगलाचरणको प्रथम कारका कियेहैं सो यह श्लोक सूरदासजीने को सो-श्लोक। ' नमामि हृदये शेषं लीलाक्षराब्धि शायिनं । लक्ष्मी सहस्र लीलाभिः सेव्यमान कलानिधि ॥३॥ और ताही समय श्रीमहाप्रभूनके सन्निधि पद किये सो पद। ... " रागविलावल-चकईरी चलि चरण सरोवरि जहाँ न प्रेम वियोग । यह पद सम्पूर्ण कारके सूर- दासजीने गायो सो यह पद दशमस्कन्धके मंगलाचरणकी कारकाके अनुसार कियो सो यामें कह्योहै जो तहाँ श्री सहस्र सहित नित क्रीडत शोभित सूरदासने या भांति पद किये ताते जानी जो सूरदासको सम्पूर्ण सुवोधनी स्फुरी सो श्रीआचार्यजी महाप्रभूनने जान्यो जो लीलाको अभ्यास भयो पाछे सूरदासजीने नन्दमहोत्सव कियो सो श्रीआचार्यजी महाप्रभूनके आगे गायो सो पद। . राग देवगंधार-व्रज भयो महर के पूत जब यह बात सुनी। . . . . . . . . सो यह श्रीआचार्य जी महाप्रभूनके आगे गायो सो सुनके श्री आचार्यनी महाप्रभू बहुत प्रस- न भये और अपने श्रीमुख ते कहे जो सूरदास मानो निकटही हुते पाछे सूरदासजीने अपने सेवक किये हुते तिन सबन को नाम दिवायो पाछे सूरदासजीने बहुत पद किये पाछे श्री आचार्य जी महाप्रभून ने सूरदासजी को पुरुषोत्तम सहस्रनाम सुनायो तब सूरदासजीको संपूर्ण भागवत स्फुर्तना भई पाछे जो पद किये सो भागवत प्रथमस्कंधते द्वादशस्कंध पर्यंत (ताई ) किये ताते वे सूरदासनी श्रीआचार्यजी महाप्रभूनक ऐसे परमभगवदीय हैं पाछे श्रीआचार्यजी महाप्रभू गऊघाट ऊपर दिन तीन विराजे पाछे फिरव्रजको पाँवधारे तब सूरदासजीहू श्रीआचार्यजी महाप्रभू नके साथ ब्रजको आये।. . ... वार्ता प्रसंग॥१॥ अब जो श्रीआचार्यजी महाप्रभु ब्रजको पाँव धारे सो प्रथम श्रीगोकुल पधारे तव श्रीआचार्यजी महाप्रभूनके साथ सूरदासजीहू आये तब श्रीमहाप्रभुजी अपने श्रीमुखसों कह्यो जो सूरदासजी श्रीगोकुलको दर्शन करौ सो सूरदासने श्रीगोकुलको दंडवत करी सोदंडवत करतमात्र श्रीगोकुलकी बाललील सूरदासजीके हृदयमें फरी और सूरदासजीके हृदयमें प्रथम श्रीमहा- प्रभूनने. सकल लीला श्रीभागवतकी स्थापी है ताते . दर्शन करत मात्र सूरदासजीको % 3D