पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२६

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। श्रीगोकुलकी बाललीला स्फुर्तना भई तब सूरदासजीने मनमें विचायो जो श्रीगोकुलकी बालली लाको वर्णन करिके श्रीआचार्यजीके महाप्रभूनके आगे सुनाइये जन्मलीलाको पद तौ प्रथम सुनायो है अब श्रीगोकुलकी वाललीलाको पद गायो सो पद ।। १॥ . रागविलावल-सोभित कर नवनीत लिये। घुटुरुवन चलत रेणुतनुमंडित मुखमें लेप किये ॥१॥ चारुकपोललोललोचनछवि गोरोचनकोतिलकदिये ।लरलटकनमानोमत्तमधुपगनमाधुरीमधुरपिये। कठुलाकंठवज्रकेहरिनखराजतसखिरुचिरहिये। धन्यसूरएकोपलयहसुखकहाभयोसतकल्पजिये ३ यह पद सूरदासने गायो से सुनिके आप बहुत प्रसन्न भये पाछे औरह पद गाये तब श्रीमहाप्रभुनी अपने मनमें विचारे जो श्रीनाथजीके इहां और तो सब सेवाको मंडान भयो है पर कीर्तनको मंडान नाहीं किया है ताते अन सूरदासजीको दीजिये तब आप श्रीजीद्वार पधारे सो सूरदासजीको साथ लिये ही सो श्रीनाथजी द्वार जाय पहुंचे तब आप स्नान करिके मंदिरमें पधारे तव सूरदासजीसों को जो सूरदासजी ऊपर आउ स्नान करिके श्रीनाथजीको दर्शन कर रतब सूरदास पर्वत ऊपर जायके श्रीनाथजीको दर्शन कियो तब आपने कह्यो जो सूरदास कछू श्रीनाथजीको सुनावी तव सूरदासने प्रथम विज्ञप्तिकोपद गायो सो पद- राग धनाश्री-अव हों नाच्यो बहुत गुपाल ॥ यह पद संपूर्ण करिके श्रीनाथजीके आगे गायो तब श्रीमहाप्रभुजीने करो जो सूरदास अब तो तुममें कछू अविद्या रही नाही तुम्हारी अविद्या प्रभूनने दूरकीनी ताते कछू भगवत् यश वर्णन करो तव सूरदासने माहात्म्य और लीला ऐसो यश करिके गाय सुनायो सो पद- राग गौरी--कौन सुकृत इन ब्रजवासिनको। यह पद संपूर्ण करिके गायो सो सुनिकै श्रीमहाप्रभुजी बहुत प्रसन्न भये सो जैसो श्रीआचार्यजी महाप्रभुनने मार्ग प्रकाश कियो हो ताके अनुसार सूरदासजीने पद किये श्रीआचा- र्यजी महाप्रभुनके मार्गको कहा स्वरूपहै माहात्म्य ज्ञानपूर्वक सुदृढ स्नेहकी तो परम काष्टाहै और स्नेह आगे भगवानको रहत नाहीं ताते भगवान बेर बेर माहात्म्य जना- वत नाम प्रकरणमें पूतना करि शकट तृणावर्त करि गर्गाचार्य करि यमलार्जुन करि वैकुंठ दर्शन करि ऐसे करिके भगवानने बहुत माहात्म्य जतायो परि इन ब्रज भक्तनको स्नेह परमकाष्टापन्नहै ताते ताही समय तो माहात्म्य रहे पाछे विस्मृत होय जाय। वार्ता प्रसंग ॥२॥ .. और सूरदासजीने सहस्रावधि पद कियेहैं ताको सागर कहिये सो सब जगदमें प्रसिद्ध भये सो सूरदासजीके पद देशाधिपतिने सुने सो सुनिके यह विचारयो नो सूरदासजी काहू रीत (विधि) सो मिलें तो भलो सो भगवत् इच्छाते सूरदासजी मिले सो सूरदासजीसों को देशाधि- पतिने जोसूरदासजी मैं सुन्योहै जो तुमने विष्णुपद बहुत कियेहैं जो मोको परमेश्वरने राज्य दियो है सो सब गुणीजन मेरो यश गावतहैं ताते तुमहूं कछु गावो तब सूरदासजीने देशाधिपतिके आगे कीर्तन गायो सोपद। . राग बिलावल-मनारे तू करि माधव सों प्रीति ॥ यह पद देशाधिपतिके आगे संपूर्ण करिके सूरदास जीने गायो सो यह पद कैसो है जो या पदको अहर्निश ध्यान रहे तो भगवत् अनुग्रहकी सदा साति रहे और संसारते सदा वैराग्य रहे और कुसंगको सदा भय रहे और भगवदीयके -