पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२८७

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सूरसागरें। . (१९४) तनु पुलकि पसीज्यो विसरिगई मुख वैन । ठाढीहै जैसे तैसे धुकि परी धरणि तिहि औन ॥कोडे । शिरगहि कोउ कमल कुंकुमा कोउ धाई जललैन । ताहि कछू उपचार नलागै डसी कठिन अहि मन मैन । होंपठई यक सखी सयानी अब बोलीदै सेन । सुरश्याम राधिका मिले विनु कहां लागे दुखदैन ॥ १४॥ केदारो ॥ भरि भरि लेत लोचन नीर । तुमविना ब्रजनाथ सुंदरि विरह खेद अधीर ।। कमल उरपर धरत छिन छिनु छिरकि चंदन चीर। जालमग शशि किरिन रोकित मलय मंद समीर॥ हौं जु तुम्हरे पास पठई देखि मनसिज भीरासूरदास सुजान श्रीपति मिलि हरहु तनुः परि.॥ १५ ॥ सारंगातनु विष रह्योहै वहु छहरि । नंदसुअन आतिगारुरी कहतहैं पठवै धौं महरि॥ गए अवसान भीर नहि भाव भाव नहिं चहरि।ल्यावो गुणी जाइगोविदको बाढीहै अति लहार।। | देखी डरही विचही खाई मातीहै जहरि । सूरझ्याम विषहर कहुँखाई यहकहि चली डहरि॥ ॥१६॥ सुघराई ॥ वृषभानुकी घरनी यशोमति पुकारयो। पह्रसुतकाज में कहतिही लाजतजि पाइपरिकै महरि करति आरयो । प्रात खरिकहिगई आय विह्वल भई राधिका कुँअरि कहुड स्योकारे । सुनी यह वात मैं आइ अतुरात ह्यां गारुरी बडोहे सुत तुम्हारे ॥ यह बडी धर्म नंदय रनि तुम पाइहौ नेक काहेन सुतको हँकारो । सूर सुनि महरि यह कहि उठी सहजही कहा तुम कहति मेरो अतिहि वारो॥१७॥ कान्हहि पठै महरि कहति पानपरि । अजू कहुँ कारे काहू खाईहै काम कुँवार ॥ सब दिन आवै गाइ जहां तहां फेरि फिरि। अवहीं सरिक गई आईहै जिय बिसार ॥ निशिके उनीनैना तैसे रहे टरि टरि । किधौं कहूं प्यारीको तटकी लागी नजरि। तेरो सुत गारुरी सुन्यौहै बावरी महरि। सूरदास प्रभु देखेजैहैरी गरल झरि ॥ १८॥ आसावरी ॥ यंत्र मंत्र कहाकरि जाने मेरो । यह तुम जाइ गुणिनको बूझहु विनकारण कत करत हों झेरो. आठवरषको कुँवर कन्हाई कहा कहत तुम ताहि । किन वहकाइ दईहै तुमको ताहि पकार लैजाहि ॥ मैंतो चकृतभई हौँ सुनिकै अति अचरज यह बात । सूरश्याम गारुड़ी कहां को कहआई विततात ॥ १९ ॥ रागोडी ॥ महरि गारुरी कुँवर कन्हाई । येक विटिनियां कारेखाई॥ ताको श्याम तुरतही ज्याई । बोलिलेहु अपने ढोटाको तुम कहिकै नेक देहु पठाई ।कुँवारराधिका प्रात खरिक गई तहां कहूंपौं कारेखाई । यह सुनि महार मनाहि मुसकानी अबहि रही मेरे गृह आई। सूरश्याम राधहि कछु कारण यशुमति समुझिरही अरगाई ॥२०॥ आसावरी ॥तब हरिको टेरति नंदरानी । भली भई सुत भयो गारुरी आजु सुनी श्रवणन यह बानी ॥ जननी टेर सुनत - हरिआए कहा कहतिरी मैया। कीरति महार बुलावन आई जाहु न कुँवरकन्हैया।। कहूं राधिका कारेखाई जाहु न आवहु झारी यंत्र मंत्र कछु जानतही तुम:सुरश्याम बनवारी ॥२१ ॥ गूलरी ॥ मैया एक मंत्र मोहिं आवै । विषहर खाइमरै जो कोऊमोसों मरन नपावै ॥ एक दिवस राधा सँग । आई खरिक विटिनियां और । तहां ताहि विषहरने खाई गिरीधरणि पहिठौर ॥ यहवाणी वृषभानु । घरनि कहि यशुमति तब पति आई। मुरश्याम मेरो बड़ोगारुरी राधा ज्यावह जाई॥ २२ ॥ ॥ सुघराई ॥ यशोमति कह्यो सुत जाहु कन्हाई । कुँवरि जिवाये अतिहि भलाई ॥ आजहि मेरे गृह खेलन आई। जातकहूं कारे तेहि खाई।कीरति महरि लिवावन आई। जाहुन श्याम करहु अतुराई. सूरश्यामको चली लवाई। गई वृषभानु पुरहि समुहाई ॥ २३॥ देवगंधार ॥ हार गारुरी तहां तब आएः। यह बानी वृषभानु सुता सुनि मन मन मन आति हर्षबढाए ॥धन्य धन्य आपुनको कीन्हा | अतिहि गई मुरझाई । तनु पुलकित रोमांचल प्रगट भए आनंद अंशुवहाइ । विह्वल देखि जनान ।