पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२८८

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दशमस्कन्ध-१० (१९५) भई व्याकुल अंग विष गए समाइ। सूरश्याम प्यारी दोउ जानत अंतरगतिकीभाइ॥२४॥रामकली ॥ रोवति महरि फिरति विततानी । बार बार लै कंठ लगावात अतिहि शिथिल भई पानी ॥ नंद सुवन के पाँइ परीलै दौरि महरि तव आइ । व्याकुलभई लाड़िली मेरी मोहन देहु जिवाइ ।। कछु पढ़िपढ़ि करि अंग परसकार विष अपनो लियो झारि। सूरदास प्रभुबड़े गारुरी शिरपर गांडू टारि ॥ २५ ॥ लोचन दियो कुँवार उघारि । कुवरि देख्यो नंदको तब सकुचि अंग संभारि ॥ वात झति जननि सोरी कहाहै यह आजु । मरतते तू बची प्यारी करतिहै कहा लाजु ॥ तब कहति तोहि कारे खाई कछ न रही सुधि गात ॥ सूर प्रभु तोहिं ज्याइ लीन्ही कही कुरिसों मात ॥ २६ ॥ सारंग ॥ बडो मंत्रकियो कुँअर कन्हाई । वारवार लै कंठ लगायो मुखचूम्यो दियो घरहि पठाई ॥ धन्य कोखि वह महरि यशोमति जहां अव तरयो यह सुत आइ। ऐसो चरित तुरतही कीन्हों कुवरि हमारी मरी जिवाइ ॥ मनहीमन अनु- मान कियो यह विधना जोरी भली बनाइ । सूरदास प्रभु पडे गारुरी व्रज घर घर यह घेर चलाइ ॥२७॥ सुपराई ॥ भलेभलेही भले कान्ह विषही उतारो। आजुते गारुरी नाव प्रगटवो तिहारो॥ जननि कहति मेरो सुत वारौ।युवती कहति हम तनधौं निहारौ।।अब कौनि करै सांझ सवारो।जान्यो ब्रज वसत कठिन ऐसो कारो सुतवारो॥ युवती कहति हम तनधौं निहारो । अब कौनि करै सांझ सवारो ॥ जान्यो ब्रज वसत कठिन ऐसोकारो । यहनिजुमंत्र जनि जियते विसारो ॥ बहुरि कारो कहु करैगो पसारो। सूरदास प्रभु सबहिन प्यारो ॥ ताहीको डसत जाको हियोहै उज्यारो ॥२८॥ रामकली ॥ नीके विषहि उतारयो श्याम । वडे गारुरी अव हम जाने संगहि रहत सुकाम ॥ ऐसो मंत्र कहां तुम पायो बहुत कियो यह काम । मरी आनि राधिका जिवाई टेरत एकहि वाम ॥ हम समुझी यह बात तुम्हारी जाहु आपने धाम । सूरश्याम मनमोहन नागर हँसिवशकीन्हों वाम॥२९॥ हँसिवशकीन्हीं पोषकुमारी ॥ विवसभई तनुकी सुधि विसरी मन हरिलियो मुरारी ॥ गएश्याम ब्रज धाम आपने युवती मदनशर मारि । लहरि उतारि राधिका शिरते दई तरुनिनपै डारि॥ करत विचार सुंदरी सब मिलि अब सेवहु त्रिपुरारी। मांगहु इहै देहु पति हमको सूरशरन वनवारी ॥३०॥ अध्याय ॥ १२ ॥ चीरहरनलीला ॥ नयतश्री॥ भवन खन सवहै विसरायोनिँदनंदन जबते मन हार लियो कहति वृथा यह जनम गवायो । जप तप व्रत संयम साधनते प्रगट होत पाषान । जैसेहि मिले श्याम सुंदर वर सोइ कीजै नहिं आन इहै मंत्रदृढ कह्यो सवन मिलि याते होइ सुहोई । वृथा जन्म जगमें जिनि खोवहु इहां अपनो नहिं कोई ॥ तवपरतीति सवनिके आई कीन्हो दृढ विश्वास। सूरश्याम सुंदर पति पार्दै इहै हमारे आश ॥३१ ॥ आसावरी ॥ गौरीपति पूजति बजनारि । नेम धर्मसों रहति क्रिया युत बहुत करति मनुहारि।।इहै कहति पति देहु उमापति गिरिधर नंदकुमार। शरनराखिलेवहु शिवशंकर तनहि नशावतमार॥ कमल पुहुपमा तूल पत्रफल नाना सुमन सुवास महादेव पूजति मन वच क्रम करि सूरश्यामकी आस ॥ ३२॥ रामकली ॥ शिवसों विनय करति कुमारि । जोरिकर मुख करति स्तुति बडे प्रभु त्रिपुरारि ॥ शीत भीत न करत सुंदीर कृषभई सुकुमारि । छहौ ऋतु तप करति नीके गृहको नेह विसारि ॥ ध्यानधरि करजोरि लोचन मंदि एक एक याम । विनय अंचल छोरि रविसों करतिहै सब वाम ॥ हहि होहु कृपालु दिनमाणि तुम विदित संसार । कामअति तनुदहत दीजै सूरश्याम भार ॥ ३३ ॥ नटनारायण ॥ रविसों विनय करति करजौरें । प्रभु अंतर्यामी यह जानी हम कारण जप तप जलखोरै ॥ प्रगटभए -