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पृष्ठ:सूरसागर.djvu/२८८

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दशमस्कन्ध-१०


भई व्याकुल अंग विष गए समाइ। सूरश्याम प्यारी दोउ जानत अंतरगतिकी भाइ॥२४॥रामकली॥ रोवति महरि फिरति बिततानी। बार बार लै कंठ लगावति अतिहि शिथिल भई पानी॥ नंद सुवन के पाँइ परीलै दौरि महरि तब आइ। व्याकुलभई लाड़िली मेरी मोहन देहु जिवाइ॥ कछु पढ़िपढ़ि करि अंग परसकरि विष अपनो लियो झारि। सूरदास प्रभु बड़े गारुरी शिरपर गांडू टारि॥२५॥ लोचन दियो कुँवरि उघारि। कुँवरि देख्यो नंदको तब सकुचि अंग संभारि॥ बात बूझति जननि सोंरी कहाहै यह आजु। मरतते तू बची प्यारी करतिहै कहा लाज़ु॥ तब कहति तोहिं कारे खाई कछ न रही सुधि गात॥ सूर प्रभु तोहिं ज्याइ लीन्ही कही कुवँरिसों मात॥२६॥ सारंग॥ बडो मंत्रकियो कुँअर कन्हाई। वारवार लै कंठ लगायो मुखचूम्यो दियो घरहि पठाई॥ धन्य कोखि वह महरि यशोमति जहां अव तरयो यह सुत आइ। ऐसो चरित तुरतही कीन्हों कुँवरि हमारी मरी जिवाइ॥ मनहीमन अनुमान कियो यह विधना जोरी भली बनाइ। सूरदास प्रभु बडे गारुरी ब्रज घर घर यह घेर चलाइ॥२७॥ सुपराई॥ भलेभलेहौ भले कान्ह विषही उतारो। आजुते गारुरी नाव प्रगटवो तिहारो॥ जननि कहति मेरो सुत वारौ। युवती कहति हम तनधौं निहारौ।।अब कौनि करै सांझ सवारो। जान्यो ब्रज वसत कठिन ऐसो कारो सुतवारो॥ युवती कहति हम तनधौं निहारो। अब कौनि करै सांझ सवारो॥ जान्यो ब्रज वसत कठिन ऐसोकारो। यहनिजुमंत्र जनि जियते विसारो॥ बहुरि कारो कहु करैगो पसारो। सूरदास प्रभु सबहिन प्यारो॥ ताहीको डसत जाको हियोहै उज्यारो॥२८॥ रामकली॥ नीके विषहि उतारयो श्याम। बडे गारुरी अव हम जाने संगहि रहत सुकाम॥ ऐसो मंत्र कहां तुम पायो बहुत कियो यह काम। मरी आनि राधिका जिवाई टेरत एकहि बाम॥ हम समुझी यह बात तुम्हारी जाहु आपने धाम। सूरश्याम मनमोहन नागर हँसिवशकीन्हों वाम॥२९॥ हँसिवशकीन्हीं घोषकुमारी॥ विवसभई तनुकी सुधि विसरी मन हरिलियो मुरारी॥ गएश्याम ब्रज धाम आपने युवती मदनशर मारि। लहरि उतारि राधिका शिरते दई तरुनिनपै डारि॥ करत विचार सुंदरी सब मिलि अब सेवहु त्रिपुरारी। मांगहु इहै देहु पति हमको सूरशरन वनवारी॥३०॥ अध्याय॥१२॥चीरहरनलीला जयतश्री॥ भवन रवन सवहै विसरायो। नँदनंदन जबते मन हरि लियो कहति वृथा यह जनम गवायो। जप तप व्रत संयम साधनते प्रगट होत पाषान। जैसेहि मिले श्याम सुंदर वर सोइ कीजै नहिं आन॥ इहै मंत्रदृढ कह्यो सबन मिलि याते होइ सुहोई। वृथा जन्म जगमें जिनि खोवहु इहां अपनो नहिं कोई॥ तबपरतीति सब़निके आई कीन्हो दृढ विश्वास। सूरश्याम सुंदर पति पावैं इहै हमारे आश॥३१॥ आसावरी॥ गौरीपति पूजति ब्रजनारि। नेम धर्मसों रहति क्रिया युत बहुत करति मनुहारि॥ इहै कहति पति देहु उमापति गिरिधर नंदकुमार। शरनराखिलेवहु शिवशंकर तनहि नशावतमार॥ कमल पुहुपमा तूल पत्रफल नाना सुमन सुवास महादेव पूजति मन वच क्रम करि सूरश्यामकी आस॥३२॥ रामकली॥ शिवसों विनय करति कुमारि। जोरिकर मुख करति स्तुति बडे प्रभु त्रिपुरारि॥ शीत भीत न करत सुंदीर कृषभई सुकुमारि। छहौ ऋतु तप करति नीके गृहको नेह विसारि॥ ध्यानधरि करजोरि लोचन मूंदि एक एक याम। विनय अंचल छोरि रविसों करतिहै सब वाम॥ हमींह होहु कृपालु दिनमाणि तुम विदित संसार। कामअति तनुदहत दीजै सूरश्याम भर्तार॥३३॥ नटनारायण॥ रविसों विनय करति करजौरें। प्रभु अंतर्यामी यह जानी हम कारण जप तप जलखोरैं॥ प्रगटभए