पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३४

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श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। | शम्भुनाथमिश्र कवि वैसवारे वाले सं० १९०१ ए कवि राना यदुनाथसिंह बैस खजूरगांवके इहाँथे थोरी अवस्थामें अल्पायु होगया वैस वंशावली औ शिवपुराणका चतुर्थखंड भाषामें बनायाहै। . शम्भुप्रसाद कवि शृंगारमें सुन्दर कवित्तहैं । (८)तोष कवि सं० १७०५ ये महाराज भापाकाव्यके आचार्योंमें हैं ग्रन्थ इनका कोई हम को नहींमिला पर इनके कवित्तोंसे हमारा कुतुबखाना भराहुवाहै कालिदास तथा तुलसीजीनेभी इनकी कविता अपने ग्रन्थों में बहुत सारी लिखीहै। (९)चिन्तामणि त्रिपाठी टिकमापुर जिले कानपुर वाले सं० १७२९ ए महाराज भाषा साहित्यके आचार्योंमें गिनेजातेहैं अन्तर्वेदमें विदितहै कि इनके पिता दुर्गापाठ करने नित्य देवीजीके स्थानमें जातेथे वे देवीजी वनकी भुइआं कहाती हैं टिकमापुरसे एक मैल के अंतर पर हैं एक दिन महाराज राजेश्वरी भगवती प्रसन्न कै चारि मुंड दिखाय बोली यही चारों तेरे पुत्र होंगे निदान ऐसाही हुवा कि चिंतामणि १ भूषण २ मतिराम ३ जटाशंकर या नीलकण्ठ चारि पुत्र उत्पन्न हुए इनमें केवल नीलकण्ठ महाराज तो एक सिद्ध के आशीर्वाद से कवि हुए शेष तीनो भाई संस्कृत काव्यको पढ़ि ऐसे पंडित हुए कि उनका नाम प्रलय तक पाकी रहेगा इन्हीं के वंश में शीतल औ विहारी लाल कवि जिनका लाल भोग है संवत् १९०१ तक विद्यमान थे निदान चिंतामणि महाराज बहुत दिन तक नागपुर में सूर्यवंशी भोसला मकरंदशाहिके इहारहे औ उन्हीं के नाम छंदविचार नाम पिंगल बहुत भारी ग्रंथ बनाया औ काव्य विवेक २ कविकुलकल्पतरु ३ काव्यप्रकाश ४ रामायण ५ ए पांच ग्रंथ इनके बनाए हुए हमारे पुस्तकालय में मौजूद हैं इनकी बनाई हुई रामायण कवित्त औ नाना अन्य छंदों में बहुत अपूर्व है बाबू रुद्र साहि सुलंकी औ शाहिजहां वादशाह औ जैनदी अहमद ने इनको हुतव दान दिए हैं इन्होंने अपने ग्रंथों में कहीं कहीं अपना नाम मणिलाल करिकै कहा है। चिन्तामणि २ । ललित काव्य करीहै। (१०) कालिदास त्रिवेदी बनपुरा अन्तर्वेदके निवासी सं० १७४९ ये कवि अन्तर्वेदमें बड़े नामी गिरामी हुएहैं । प्रथम औरंगजेब बादशाहके साथ गोलकुंडा इत्यादि दक्षिणके देशोंमें बहुत दिन तक रहे तेहि पीछे राजा योगाजीतसिंह रघुवंशी महाराजै जम्बूके इहाँ रहे औ उन्हींके नाम वधूविनोद नाम ग्रन्थ महाअद्भुत बनाया औ एक ग्रन्थ कालीदास हजारा नाम संग्रह बनाया जिस्में सं० १९८० से लेकर अपने समय तक अर्थात् सं० १७७५ तकके कवि लोगोंके एक हजार कवित्त २१२ कवि लोगोंके लिखेहैं हमको इस ग्रन्थके बनानेमें कालिदासके हज़ारासे बड़ी सहायता मिली है औ एक ग्रन्थ और जंजीरा बन्दनाम महाविचित्र इन्ही महाराजका हमारे पुस्तकालयमेंहै इनके पुत्र उदयनाथ कविन्द औ पौत्र कवि दूलह बड़े महानकवि हुएहैं। (११) ठाकुर कवि प्राचीन सं० १७०० ठाकुर कविको किसीने कहाहै कि वे असनी ग्रामके वन्दीजनथे संवत् १८०० के करीब मोहम्मदशाह बादशाइके जमानेमें हुएहैं औ कोई कहताहै कि नहीं ठाकुर कवि कायस्थ बुंदेलखण्डके बासीहैं किसी बुंदेलखण्डी कविका बयानहै कि छत्र- पुर बुंदेलखण्ड में बुंदेला लोग हिम्मति वहादुर गोसाई के मारने को इकट्ठा हुए थे टाकुर कविने यह कवित्त (समयो यह वीर वरावने हैं) लिखि भेजा सब बुंदेला चले गए औ हिम्मति बहादुरने ठाकुर को बहुत रुपया इनाम दिया हिम्मति वहादुर संवत् १८०० में थे औ. कवि कालिदास