श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र। रहने लगे राज्य के संपूर्ण काज काम बंद होगए तब विहारीलाल ने यह दोहा बनाय राजाके पास तक किसी उपाय से पहुँचाया । . . दो०-नहिं पराग नहिं मधुररस,नहिं विकास यहिकाल ।अली कलीहूं सो विध्यो, आगे कौन हवाल. १ ___ इस दोहा पर राजा अत्यन्त प्रसन्न | १०० मोहर इनाम दै कहा इसी प्रकार के और दोहा बनावो विहारीलाल ने सातसौ दोहा वनाए औ ७०० अशरफी इनाम में पाया यह सतसई ग्रंथ अद्वितीय है बहुत कवि लोगोंने इसके ढंग पर सतसई बनाकर अपनी कविता का रंग जमाना. चाहा पर किसी कविकी सुखरुई प्राप्त नहीं हुई यह ग्रंथ ऐसा अद्भुत है कि हमने १८ तिलक तक इसकें देखे हैं औ आज तक तृप्ति नहीं है लोग कहते हैं कि अक्षर कामधेनु होते हैं सो वास्तव में इसी ग्रंथके अक्षर कामधेनु दिखाई देते हैं। सब तिलकों में सूरतिमिश्र आगरे वाले का तिलक विचित्र है औ सव सतसयों में विक्रमसतसई औ चंदनसतसई इसके लगभग है। विहारी कवि २ सं० १७३८ इनके महासुंदर कवित्त हजाराम, । विहारी कवि ३ बुंदेलखंडी सं० १८०६ सरस कविता करीहै । विहारीदास कवि ४ ब्रजवासी सं० १६७० इनके पद रागसागरो द्भव राग कल्पद्रुम में हैं। (१) नीलकंठमिश्र अंतर्वेदी वासी संवत् १६४८ दासजीने इनकी प्रशंसा ब्रजभाषा जाननमें करीहै। (द)नीलकण्ठत्रिपाठी टिकमापुर वाले मतिरामके भाई।संवत् १७३०इनका कोई ग्रंथहमने नहींदेखा। (६) वेनीकवि प्राचीन असनी जिले फतेपुरवाले । संवत् १६९० ए महान कवीश्वर हुएहैं इनका एक ग्रंथ नायकाभेदमें अति विचित्र देखनेमें आयाहै इनकी कविताई बहुतही सरस ललित मधुरहै। बेनीकवि २ बन्दीजन बेंती जिले रायबरेलीके निवासी संवत् १८९४ ए कवि महाराजे टिकेत राइ दीवान नवाव लखनऊ के इहां थे औ बहुत वृद्ध है संवत् १८९२ के करीब मर गए। बेनी प्रवीन ३ बाजपेयी लखनऊ के निवासी संवत् १८७६ ए कवि महासुंदर कविता करने में विख्यात हैं इन का ग्रंथ नायका भेद में देखनेके योग्य है। वेनी प्रगट ४ ब्राह्मण कविंद कवि नरवरी निवासीके पुत्र संवत् १८८० इनकी काव्य महासुंदर है। .. (७) एक शंभु कवि का वर्णन काव्यरत्नाकर की टिप्पणी में है उसके सिवाय यहां लिखा है। शंभुनाथ मिश्र कवि सं० १८०३ए महाराज महान कवि भगवंत राइ खीची के यहां असोथर में रहा करते थे शिव कवि इत्यादि सैकरों मनुष्यों को इन्होंने कवि कर दिया कविता में महा. निपुण थे. रसकल्लोल १ रसतरंगिणी २ अलंकार दीपक ३ ए तीनि ग्रंथ इनके बनाये हुए हैं। . शंभुनाथकवि वंदीजन सं०१७९८ ये कवि सुखदेव के शिष्य थे रामविलास नाम रामायण बहुत ही अद्भुत ग्रंथ बनाया है रामचंद्रिका की ऐसी इस ग्रंथ में भी नाना छदै हैं।... शंभुनाथकवि त्रिपाठी डौंडिया खरेवाले सं० १८०९ए महाराज राजा अचलसिंह वैस डौंडिया खेरे के इहांथे राव रघुनाथसिंह के नाम वैतालपचीसी को संस्कृत से भाषा किया है औ मुहूर्त चिंतामणि ज्योतिषग्रंथ को भापा में नाना छंदों में बनाया है ए दोनों ग्रंथ सुंदर हैं।" %3-
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