पृष्ठ:सूरसागर.djvu/३६

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- श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्रः। वैसवारमें होगये हैं राव मर्दनसिंह बैस डौंडियाखेरेके इहांथे और उन्हीं के नाम रसार्णव नाम ग्रंथ नायका भेदमें बहुत सुंदर बनाया है शंभुनाथ इत्यादि कवि इन्हीके शिष्यथे। • सुखदेव कवि ३ अंतर्वेदी वाले। १७९१ ए कवि महाराजै भगवंत राय खीची असोथर वाले के इहांथे कछु आश्चर्य नहीं है कि ए महाराज सुखदेव मिश्र दौलतिपुर वाले न होवें। (१५) देव कवि प्राचीन देवदत्त ब्राह्मण समानेगांव जिले मैनपुरीके निवासी सं० १६६३ ये महाराज अद्वितीय अपने समयके भाम मम्मट के समान भाषा काव्यके आचार्य होगयेहैं शब्दों में ऐसी समाई कहां है जिनमें इनकी प्रशंसा की जावे इनके बनाये ग्रंथोंकी संख्या आज तक ठीक ७२ हमको मालूम हुई है तिनमें केवल ११ ग्रंथके नाम जो हमको. मालूम हैं लिखे जाते हैं जिन्हें अक्सर हमने भी देखाहै। प्रेमतरंग २ भावविलास ३ रसविलास ४ रसानंदलहरी ५ सुजानविनोद ६ काव्यरसायन पिंगल ७ अष्टयाम ८ देवमायाप्रपंचनाटक ९ प्रेमदीपिका १० सुमिलविनोद ११ राधिकाविलास देव (काष्टजिह्वा स्वामी) काश्यस्थ । १९११ ए महाराज पंडित राज पट्शास्त्रके वक्ता प्रथम संस्कृत काशी जीमें पढ़ि दैव-योगसे एकबार अपने गुरुसे बादकरि पीछे पछिताय काष्ठकी जीभ मुहमें डालि बोलना बंद करिदिया पाटीमें लिखिकै बातचीत करतेथे उन्हीं दिनों श्रीमन्महारान. ईश्वरीनारायण सिंह काशीनरेशने इनसे उपदेश लै रामनगरमें टिकाया तव ए महाराज भाषामें नाना ग्रंथ विनयामृत इत्यादि बनाए इन्हींके पद आजतक काशीनरेशकी सभामें गाए जाते हैं। (१६) पजनेशकवि बुंदेल खण्डी १८७२ ए कवि परनामें थे औ मधुप्रिया नाम ग्रंथ. भाषा- साहित्यमें अद्भुत बनायाहै इस कविकी अनूठी उपमा अनूठे पद अनुप्रास जमकतारीफ़के योग्य हैं पर टवर्ग शृंगार रसमें औ कटु अक्षरोंसे जो अपनी कवितामें भारदियाहै इसकारणसे इनकी काव्य कवि लोगोंके तीर रूपी जिह्वाकी निशाना हो रही है इनका नखशिख देखने योग्य है इन्होंने पारसी विद्यामेंभी श्रम कियाथा।. .. (१७) धनआनंद कवि । १६१६ ए कवि कविलोगोंमें महाउत्तम कवि होगए हैं। (१८) घनश्याम शुक्छ असनी वाले १६३५ ए कवि कवितामें महानिपुण बांधवनरेशके इहां थे ग्रंथ तो पूरा हमने कोई नहीं पाया कवित्त २०० तक इनके हमारे पास हैं कालिदासने भी इनके कवित्त हजारामें लिखेहैं। (१९) सुंदरकविब्राह्मण ग्वालियरनिवासी सं० १६८८ ये महाराज शाहजहां बादशाहके कवि थे पहिले कविरायकी पदवी पाया इनका बनाया हुवा सुंदर भंगार नाम ग्रंथ भाषासाहित्य में बहुत सुंदर है इन्हीं कविके पदमें यह अगन परा था (सुंदर कोप नहीं सपने ) यह कवित्त इस ग्रंथ में है। सुंदर कवि दादूजीके शिष्य मेवाड़देशके निवासी । इनकी कविता' शांतरसमें कुछ अच्छी है सुंदर सांख्य नाम एक इनका बनाया हुआ ग्रंथभी सुना जाताहै। . (२०) सुंदरकवि चंदीजन असनीवाले रसप्रवोध ग्रंथ बनायाहैं। मुरारिदास ब्रजवासी इनके पद राग सागरोद्भवमें हैं। (२१) बोधाकवि सं० १८०४ इनके कवित्त बहुतही सुंदर हैं। बोधकवि बुंदेलखण्डी। सं: १८५५ ऐजन् ।। Her .. . . . . . . . . . . . - . . .