पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४६

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- श्रीसूरदासजीका जीवनचरित्र । (९१) इंद्रजीत त्रिपाठी वनपुरा अंतर्वेदी वाले सं० १७३९ औरंगजेबके नौकरथे । (९२) पृथ्वीराज कवि सं० १६२४हनारामें इनके कवित्तहैं ए कवि बीकानेरके राजा संस्कृत औ भाषाके बड़े कविथे । (९३) लक्ष्मीनारायण मैथिल सं० १९८० ए कवि खानखानाके यहाँथे । (९४) हरिकवि ए महान् कविथे इन्होंने चमत्कार चंद्रिका नाम ग्रंथ भाषाभूषणका टीका १ औ कविप्रियाभरण नाम ग्रंथ कविप्रियाका तिलक २ विस्तार पूर्वक बनायाहै औ तीनों काण्ड अमरकोश भाषा कियाहै। (९५) बलिभद्र सनाढ्य उडछेवाले केशवदास कविके भाई सं० १६४२ इनका नखशिख सारे कवि कोविदोंमें महाप्रमाणिक ग्रंथ है औ भागवतपुराणपर टीका बहुत सुंदर किया है। . (९६) विट्ठलनाथ गोकुलस्थ गोसाई वल्लभाचायेके पुत्र सं० १६२४ए महाराज वल्लभाचाय्ये जीके पुत्र परमभक्तवात्सल्यनेष्टाके हुएहैं इनके सात पुत्रोंकी सात गादियाँ गोकुलंजीमें चली आती हैं इनकी कविता पद इत्यादि बहुतसे रागसागरोद्भवमें हैं। . (९७) विश्वनाथ कवि प्राचीन सं० १६५६ (९८पद्मनाभजी ब्रजवासी कृष्णदास पयहारी गलताजीके शिष्य सं० १९६० इनके पद बहुत रागसागरोद्भवमें हैं अर्थात् कील्द, अग्रदास, केवलराम, गदाधर, देवा, कल्याण, हठी नारायण पद्मनाभ ये सब कृष्णदासजीके शिष्य, औ महान्कवि हुयेहैं औ अग्रदासके शिष्य नाभादासथे। (९९) प्रवीनराइ पातुरी उडछा बुंदेलखण्डवासिनी सं० १६४०इस वेश्याकी तारीफमें केशव | दास जूने कविप्रिया ग्रंथकी आदिमें बहुत कुछ लिखा है इस्के कवि होनेमें कुछ संदेह नहीं इस्का बनाया हुवा ग्रंथ तो हमको नहीं मिला केवल एक संग्रह मिली है जिसमें इसके सैकरों कवित्त बनाए हुये हैं हमने किसी तवारीख़में लिखा नहीं देखा कि बादशाह अकबरने प्रवीनको बोलाया | केवल विदित है कि अकवरने प्रवीनकी प्रवीनताई सुनी दरवारमें हाज़िर होनेका हुकुम दिया तो प्रवीनरायने प्रथम राजा इंद्रुजीतकी सभामें जाय ए तीनि कूट कवित्त पढ़े (आईही बूझन मंत्र) तेहि पीछे जब प्रवीन सभामें बादशाहके गई तो बादशाहसे प्रश्नोत्तर हुए। बादशाह-युवन चलत तिय देहते, चटकि चलत किहि हेतु । .प्रवीन-मन्मथ वारि मसालको, सैंति सिहारो लेतु ॥१॥ बादशाह-ऊंचे वै सुर वश किये, सम लै नर वश कीन । प्रवीन-अब पताल वश करनको, ढरकि पयानों कीन ॥२॥ इस्के पीछे जव प्रवीनने यह दोहा पढ़ा। विनती राय प्रवीनकी, सुनिये शाह सुजान । जूठी पतरी भंखतहैं, वारी बायस स्वान ॥१॥ .तव बादशाहने विदाई दुई औ प्रवीन इंद्रजीतके पास आई। (१००) भगवानदास निरंजनी भृत्यहरि सत कवित्तोंमें भाषा किया है । पुनः भगवानदास मथुरा निवासी सं० १६९० राग सागरोद्भवमें इनके पदहैं। (१०१) मनोहर कवि (राजा मनोहरदास) कछवाहा सं० १९९२ ये महाराज अकबर शाह के मुसाहिब फारसी संस्कृत भाषाके महान कविथे फारसीमें अपना नाम (तौसनी) करिके वर्णन करतथे।

  • मार्कंडे कविने मुझसे यह कवित्त कहाथा-

कवित्त-जबते सुनीहै वैन तवते न मोको चैन पातीपदी नेकु सो विलंबनालगावेगो। लेके यमदूतसो समस्त राजपूत आज आठघड़ी आगरामें उद्धम मचावगो ॥ कहै पृथ्वीरान मिया नेक उर धार धारो चिरजीव राना ये मलेच्छन. भगावेगो .मानको मरदि मान परवल प्रताप सिंह बब्बर लो तडपि, अकन्नर पै आवेगो ॥ -