पृष्ठ:सूरसागर.djvu/४६१

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(३६८) मरसागर। तेरोई गुणग्राम ॥ श्रवण सुनत प्यारी पुलकित भई प्रफुलित तन मन रोम रोम सुखराशि वाम ।। सूरदास प्रभु गिरिवर धरको चली मिलन गजराज गामिनी झनक रुनुक वनधाम ॥ २॥ ॥ देवगंधारी । चलौ किन मानिनि कुंज कुटीर । तुव विन कुँवर कोटि वनितातज सहतं मदनकी पीर ॥ गद्गद सुर पुलकित विरहानल नैन विलोकत नीर । कासि क्कासि वृषभानु नंदिनी विल। पत विपिन अधीराबंसी विशिख माल व्यालावलि पंचानन पिक कीर मलयज गरल हुतासन मारुत शाखामृगरिपुचीर॥हियमें हरषि प्रेम अति आतुर चतुरचलहुपियतीरासुनि भयभीतवज्रके पिंजर सूर सुरति रणधीर ॥३॥ कल्याणानवेली सुनिनवल पियनवनिकुंज हैरीभावतेलालसोंभावती केलिंकरि भावती भावतो रसिक रसलैरी । त्यागि अभिमान गुणरूप सौभाग रति मानिनी मनुहारि मैन सुख दैरी। एक ब्रजवास आवत जात देखियत आपनी जाति पति पेडको घेरी। लहित उदार हित पीर करि कीर मति धीर तनु मेटि मन्मथको भैरी । कलाचौंसठि संगीत शृंगार रस कोक' | विधि बंद प्रगट भेदसे सैरी। सुरति सागर साज श्रवत जस रसलाज अंग अनुकूल रतिराज रण: जैरी॥ कामशर कनय कुच प्रगट भंगी चित दागि मेलै कंत आपनो कैरी॥ जाम आलाप सुनि दारुसे पल्लवै पुहुप मधुधार करभार भरनरी । मुरलिका गानं तुवनाम मधुराधुनी सुधा गुण | सिंधु नहिं गनतनिज मेरी । हीन जलमीन ज्यों दरश विन कमल लै प्राण प्रीतम नहीं धीरज धरैः री॥प्रीतिकीरीति गति होति हैरी हरषि निरखि रति करि चिचुक अशनि लैरीअिधर मधुलोभ पंथान चितवत चकित कमल गुल्लासदल तल रचरी ।। अरुण शीतल मृदुपातदल सरि करत सेज चढि दल मही चरण के बैरी। तुव कामकलि कमनीय कामिनि बंद चंद चकोर चातक स्वाति तैरी । सूर सुनि श्रवणतजि भवन कार गवन मन वन तनु तवहि कह सगति गैरी ॥४॥ कान्हरो ॥ मनो गिरिवरते आवति गंगा। राजति अति रमणीक राधिका यहि विधि अधिक अनू पम अंगा ॥ गौर गात दुति विमल वारि विधि कटि तट त्रिवली तरल तरंगा । रोम राजि मनो यमुन मिली अध भवर परत मानो भुवभंगा ।। भुजबल पुलिन पास मिलि बैठे चारुचक उरुज उतंगा। मनो मुख मृदुल पाणि पंकरुह गुरुगति मनहु मराल विहंगा॥ मणि गण भूषण रुचिर तीरवर-मध्यधारमोतिन मै मंगा । सूरदास मनो चली सुरसरी श्रीगोपाल सागर सुख संगा। ॥ ५ ॥ सूही ॥ नाहिंन नैन लगे निशि यहि डर। जयते जाइ कह्यो हँसि हरिसों समर सोच उनके जिय धर धर ॥ भौंह कमान तिलक भलुकाकरि रुचि सुदेश श्रीमंत सुरंग सर । चलय ताटक कच नख नेजा दामिनि से चमकत रद असि वर । गज उरोज वरवाज विलोचन बंकट विशद विसाल मनोहर ॥ लाल ढाल अंचल चंचल गति चमर चिकुर राजत ता ऊपर । अंग अंग सज सुभट सहायक बने विविध भूषण बानेवर ॥ कामिनि आजहि आनि रहेगी काम कटक ले कुजः झंडातर । चरन रुनित नूपुर रणतूरा सुनत श्रवण कापहि गे थर थर ॥ तब जानवी: किसोर जो र रुपि रही जीति करि खत सबै पर ।ऐंचि करौ जो कहौ किसोरी वैजो भीत कै रहे वैठि घर ।। यहै मतो मुख मुख जोरहौ तही करहु पार लै पकरि पियहि कर । सहचार चतुरातुरले. आई बाँह बोलदैकरि' कहत वह छर । रोष सुरत नन मिली . अंकम भरि लैलटकी दे दंत पियाधर ।। जुरत सुरत संग्राम मच्यो छवि टि टि-कच टूटि हार लर। अति सनेह दुहुँ विसरि देह भिरि मैन मल्ल सुरझाई गिरिधरविविध विलास कोश वश राधा नारिनंदनंदन वरः। निगमन नेति कह्यो निर्गुण सों कह गुणाधि वरणिहै सूर नर ॥ ६ ॥ टोडी ॥ फूलनको महल