पृष्ठ:सूरसागर.djvu/५५६

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- - - दशमस्कन्ध-१० (४६३) कलहंसाामदन गोपाल देखियत हैं सब अब दुख सोक विसारी । पैठे हैं सुफलकसुत गोकुल लेन जो इहाँ सिधारी ॥ आनंदित चित जननि तात हित कृष्ण मिलन जिय भाए । सूरदास यदुकुल | हित कारण अब माधो मधुपुरी आए ॥६६॥मलार। वेदेखो आवत, व्रजते वने वनमाली । धन तन श्याम सुदेश पीतपट सुंदर नैन विशाली ॥ जिनि पहिले पलना पौढे पय पीवत पूतना दाली। अप बक वच्छ अरिष्ट केशी मथि जलते काढयो काली ॥ जिन हति शकट प्रलंय तृणा वृत इंद्र प्रतिज्ञा टाली । एते पर नहिं तजत अपोडी कपटी कंस कुचाली । अब विधु वदन विलोकि सुलोचन श्रवण सुनतही आली । धन्य सुगोकुल नारि सूर प्रभु प्रगट प्रीति प्रतिपाली।६६||भैरव। एई माधो जिन मधु मारेरी। जन्मतही गोकुल सुखदीन्हो नंददुलार बहुत सारेरी ॥ केशी तृणा वर्त वृषभासुर हती पृतना जब वारेरी। इंद्रकोप वर्पत गिरि धारयो महाप्रवल बजके टारेरी॥ वल समेत नृपकंस बोलाए रचे रंग अति भारेरी । सूर अशीश देति सव सुंदरि जीवहिं अपनीमाँ प्यारेरी ॥६॥विहागरो॥ भए सखि नेन सनाथ हमारे । मदनगोपाल देखतही सजनी सब दुखसोक विसारे । पठएहें सुफलकसुत गोकुल लेन जो इहां सिधारे। मल्लयुद्ध प्रति कंस कुटिल मति छल करि इहां हकारे ॥ मुटिक अरु चाणूर शैलसम सुनियतहैं अतिभारे । कोमल कमल समान देखियत ये यशमतिके वारे । ह यह जीति विधाता इनकी करहु सहाय सवारे ।सूरदास चिरजीवहु युग युग दुष्टदले दोउ नंददुलारे॥६॥य दूसरी लीला अफूरकी रागमारूपयमुनातटआइ अकूर अन्हाए। श्याम बलरामको रूप जलमें निरखि बहुरि रथ देखि आचरज पाए । किधों यह प्रति विव जलमें देखत किधों निजरूप दोउ, सुहाए । चकृत होइ नीर में बहुरि बुडकी दई सहित सुता सिंधु तहां दरशपाए । दोट करजोरि करि विनय बहुविधि करी लियो जब रूपतत्र प्रभु दुराई । निकसि के नीरते तीर आयो बहुरि ताहि ढिगवोलि बोले कन्हाई ॥ कहा तुम और देखत हुते तात तुम को सर जगत तुमही मुलायो । गति तुम्हारी नजान कोऊ तुम विना राख प्रभु राख मैं शरण आयो। हरि कह्यो चली मथुरापुरी देखिए सहित अकर पुनि तहां आए। सूर प्रभु कियो विश्राम सब निशि तहां बोधि अकूर निजघर पठाए॥६९॥अध्याय ॥ ४२ ॥ श्रीकृष्ण मथुरपुर आगमन हेतु॥राग भैरव।। भोरभयो जागे नंदनंदन । नंदराइ निरखत मुख हरपे पुनि आए सब ग्वाल ॥ देखि पुरी अति परम मनोहर कंचनकोट विशालाकहन लगे सब सूर प्रभू सो होहु इहां भूपाल ७०॥राग परान।। हरि वल सोभितयो अनुहार।शशिअरु सूर उदभए मानां दोऊ एकहि वारग्विाल वाल सँग करत कौतूहल गवनपुरी मंझार । नगर नारि सुनि देखन धाई रतिपति गेहविसार ॥ उलटि अंग आभूपण साजत रही नदेह सँभारासूरदास प्रभु दरश देखिक भई चकृत विचार ॥७॥राग धनाश्री। वे देखो आवत दोऊ जन । गौर श्याम नट नील पीत पट जनु दामिनी मिलीयन ॥ लोचन बैंक विशाल चितै हरत हो सबके मन । कुंडल श्रवण कनक मणि भूपित जडितलाल अतिलोल मीन तनावंदन.चित्रविचित्र अंग शिर कुसुम सुवास घरे नँदनंदनावलि वलि नाउँ चलहि जेहि मारग संग लगाइ लेत मधुकर गन।।धन्य सुभूमि जहां पगधारे जीतहि गे रिपु आजु रंगरन । सूरदास वै नगर नारि सब लेते वलाइ वारि अंचल सन।। ७२ ॥ अथ रनफवध हेतु ॥ रामकली ॥नृपति रजक अंवर नृप धोवता देखे श्याम राम दोउ आवत गर्व सहित तिन जोवत।आपुसहीमें कहत हँसत हैं प्रभु हृदय यह शालतातनक तनकसे ग्वाल छोहरन कंस अवहिं वषिघालततृिणावर्त प्रभु आहि हमारो इनहीं || मारयो ताहिबहुत अचगरी यहि करिराखी प्रथम मारहे याहिनाको नाम श्याम सोइ खोटो तैसेइ %