पृष्ठ:सूरसागर.djvu/६९०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

श्री। अथ सूरसागर. एकादशस्कन्ध। ॥रागनटनारायण ॥ तुम्हरो वचन न मेव्योजाइ ।प्राणनाथ कृपाल परमगुरु सुजान यादवराइ ॥ कहत पठवन बद्रिका मोहिं गूढज्ञान सिखाइ । सकुच साहस करत मनमें चलत परत नपाइ॥पता काके दंडलौं मन लेत संग लगाइ। कहा करौं चित चरण सन्मुख वसण सहश उड़ायामेरही या हृदयकी हरि कठिन सकल उपाइ। सूर सुनत जु गयो तवहीं खंड खंड नशाइ॥१॥रागसारंग ॥ हरिसों हौं कहा कहीं। प्रभु अंतर्यामी सब जानत यह सुनि सोचि रहौं । विनु बुधि मनुज देह दयानिधि क्यों करि लै निवहौं । समुझि आपनी करनी गोसाई काहे न शूल सही ॥ में यह ज्ञान छली व्रजवनिता दियो सुक्यों न लहौं। प्रकट पाप तनुताप सूरप्रभु केहिपर हठहि गहौं । ॥२॥ रागनट ॥ कैसे करि आवत श्याम इती । मन क्रम वचन और नहिं मेरे पदरज त्यागि हिती ॥ अंतर्यामी यहौ न जानत जो मो उरहि विती । ज्यों कुजुवारि रस वीधि हारि गथु सोचतु पटकि चिती ॥ रहत अवज्ञा होइ गुसाई चलत न दुखहि मिती । क्यों विश्वास करहिगो कोरी सुनि प्रभु कठिन क्रिती ॥ इतर नृपति जिहि उचत निकट करि देत न मूठिरिती। छुटत नअंश सुनितहि कृपिणके प्रीति नसूर रिती ॥ ३ ॥ रागदार ॥ क्यों करि सकी आज्ञा भंग । करुणामय पद कमल लालच नाहिंन छूटत संग ॥ यह रजायसु होत मोसन कहत बदरी जान । कहा करौं मम पाप पूरण सुनि न निकसत प्रान ॥ मैं अपराधी ब्रजवधू सों कहे वचन विप तूल ॥ मोहिं तजि अवर को वियसहै ऐसे शूल ॥ अब न जो तुम जाहु ऊधो मिटै युग भृत रीति ॥ हो जु तेरी सकल जानत महा मोसन प्रीति।सकल ज्ञानप्रबोधि उनसों कहि कथा समुझाइ । यादवनको प्रलय सुनि वे मरीहंगी अकुलाइ ॥ अति विपाद सुह दय करि करि उठि चल्यो है दीन । सूर प्रभु तू कृपासागर किनभयों हौं मीना रागविलावल ।। हरि हरि हरि हरि सुमिरन करो । हार चरणाविद उर धरो ॥ नारायण जब भये अवतार । कहों सो कथा सुनो चितधार ॥ धर्म पिता अरु मूरति माई । भये नारायण सुत तेहि आई ॥ वदरीका श्रम रहे पुनि जाइ । योग अभ्यास समाधि लगाइ ॥ उनके और कामना नाहिं । सुख पावे त्रिभु वन मन माहि ॥ सुरपति देखत गयो डेराइ । कामसैन सँग दियो पठाइ ॥ ऋतुवसंत फूली फुलवाइ । मंद सुगंध बयार बहाइ ॥ करत गान गंधर्व सुहाइ । नृत्य भली अप्सरा देखाइ ॥ काम | वाण पांचों संधाने । नारायण ते मनहिं न आने ॥ तब तिन सबन तहां भय पायो । करो इन्द्र । हमें कहां पठायो।तब नारायण आंख उघारी।उन सबकी कीन्हीं मनुहारी।तुम कछु मनमें भय मति । ME-Page:सूरसागर.