सहानुभूति प्रकट करके मौन साध गये, उसी प्रकार अन्य सहायकों ने भी आना कानी की, तो भाई अकेला चना तो भाड़ नही फोड़ सकता? मेरे पास न धन है न ऐश्वर्य है, न उच्च उपाधियां है, मेरी कौन सुनता है? लोग समझते है, बक्की है। नगर में इतने सुयोग्य विद्वान् पुरुष चैन से सुख भोग कर रहे हैं कोई भूलकर भी मेरी नहीं सुनता।
शर्मा जी शिथिल प्रकृति के मनुष्य ये। उन्हें कर्तव्य क्षेत्र में लाने के लिये किसी प्रबल उत्तेजना को आवश्यकता थी। मित्रो की वाह वाह जो प्राय:मनुष्य की सुप्तावस्था को भंग किया करती है उनके लिये काफी न थी। वह सोते नही थे, जागते थे। केवल आलस्य कारण पड़े हुए थे। इसलिये उन्हें जगाने के लिये चिल्लाकर पुकारने की इतनी जरूरत नही थी जितनी किसी विशेष बात की। यह कितनी अनोखी लेकिन यथार्थ बात है कि सोये हुए मनुष्य को जगाने की अपेक्षा जागते हुए मनुष्य को जगाना कठिन है। सोता हुआ आदमी अपना नाम सुनते ही चौंककर उठ बैठता है, जागता हुआ मनुष्य सोचता है कि यह किसकी अवाज है! उसे मुझसे क्या काम है? इससे मेरा काम न निकल सकेगा? जब इन प्रश्नो का संतोषजनक उत्तर उसे मिलता है, तो वह उठता है, नही तो पड़ा रहता है पद्मसिंह इन्हीं जागते हुए आलसियो में से थे। कई बार जातीय पुकारकी ध्वनि उनके कानों में आई थी किन्तु वे सुनकर भी न उठे थे। इस समय जो पुकार उनके कानों में पहुँच रही थी, उसने उन्हें बलात् उठा दिया। अपने भतीजे को जिसे वह पुत्र से भी बढ़कर प्यार करते थे, कुमार्ग से बचाने के लिये अपने भाई की अप्रसन्नता का निवारण करने के लिये वे सब कुछ कर सकते थे। जिस कुव्यवस्था का ऐसा भंयकर परिणाम हुआ उसके मूलोच्छेदन पर कटिबद्ध होने के लिये अन्य प्रमाणों की जरूरत न थी। बाल विधवा-विवाह के घोर शत्रुओं को भी जब तब उसका समर्थन करते देखा गया है। प्रत्यक्ष उदाहरण से प्रबल और कोई प्रमाण नहीं होता। शर्मा जी बोले यदि मैं आपके किसी काम आ सकूँ तो आपकी सहायता करने को तैयार हूँ।
विट्ठलदास उल्लसित होकर बोले, भाई साहब, अगर तुम मेरा हाथ