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सेवासदन
 

सुमन-सेठजी, आप इतनी जल्दी नाराज हो गये। मान लीजिये मैंने जानबूझकर ही आपको गिरा दिया, तो क्या हुआ?

इतने में विट्ठलदास ऊपर से उतर आये। उन्हें देखते ही सेठजी चौंक पड़े। घड़ों पानी पड़ गया।

विठ्ठलदास ने हँसी को रोककर पूछा, कहिये सेठजी, आप यहाँ कैसे आ फंसे? मुझे आपको यहाँ देखकर बड़ा आश्चर्य होता है।

चिम्मन-इस घड़ी कुछ न पूछिये। फिर यहाँ आऊँ तो मुझपर लानत है। मुझे किमी तरह यहाँ से नीचे पहुँचाइये।

विठ्ठलदास ने एक हाथ थामा, साईस ने आकर कमर पकड़ी। इस तरह लोगों ने उन्हें किसी तरह जीने से उतारा और लाकर गाड़ी में लिटा दिया।

ऊपर आकर विट्ठलदास ने कहा, गाड़ीवाला अभी तक खड़ा है, दस बज गये। अब विलंब न करो।

सुमन ने कहा अभी एक काम और करना है। पंडित दीनानाथ आते होगे। बस उनसे निपट लूँ तो चलूँ। आप थोड़ा सा और कष्ट कीजिये।

विठ्ठलदास ऊपर जाकर बैठे ही थे कि पंण्डित दीनानाथ आ पहुँचे। बनारसी साफा सिर पर था, बदन पर रेशमी अवकन शोभायमान थी। काले किनारे की महीन धोती और कालो वार्निश के पम्प जूते उनके शरीर पर खूब फबते थे।

सुमन ने कहा, आइये महाराज! चरण छूती है।

दीनानाथ-आशीर्वाद, जवानी बढ़े, आँख के अंधे गाँठ के पूरे फंसे, सदा बढ़ती रहे।

सुमन--कल आप कैसे नहीं आये, समाजियों को लिये रात तक आपकी राह देखती रही।

दीनानाथ-कुछ न पूछो, कल एक रमझ में फंस गया। डाक्टर श्यामाचरण और प्रभाकर राव स्वराज्य को सभा में घसीट ले गये। वहाँ बकबक झकझक होती रही। मुझसे सबने व्याख्यान देने को कहा।