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सेवासदन
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बकरा कटे, कही आम टूटे, कही भोज हो, उमानाथ का हिस्सा बिना माँगे आप ही आप पहुँँच जाता। अमोल बड़ा गाँव था। ढाई तीन हजार जन-संख्या थी। लेकिन समस्त गाँव मे उनकी सम्मति के बिना कोई काम न होता था। स्त्रियों को यदि गहने बनवाने होते तो वह उमानाथ से कहती। लड़के-लडकियों के विवाह उमानाथ की मार्फत तै होते। रेहननामे, बैनामे, दस्तावेज उमानाथ ही के परामर्शस लिखे जाते। मुआमिले मुकद्दमे उन्ही के द्वारा दायर होते और मजा यह था कि उनका यह दबाव और सम्मान उनकी सज्जनता के कारण नहीं था। गाँव वालो के साथ उनका व्यवहार शुष्क ओर रूखा होता था। वह वेलाग बात करते थे, लल्लोचप्पो करना न जानते थे, लेकिन उनके कटु वक्यों को लोग दूध के समान पीते थे। मालूम, नहीं उनके स्वभाव में क्या जादू था। कोई कहता था यह उनका एकबाल है, कोई कहता था इन्हे महावोरका इष्ट है। लेकिन हमारे विचार में यह उनके मानवस्वभाव के ज्ञान का फल था वह जानते थे कि कहाँ झुकना ओर कहाँ तनना चाहिए। गाँव वालो से तनने मे अपना काम सिद्ध होता, था अधिकारियो सें झुकने में ही। थीने और तहसील के अमले, चपरासी से नंलेकर तहसीलदार तक, सभी उनपर कृपादृष्टि रखते थे। तहसीलदार सहब के लिए वह वर्षफल बनाते, डिप्टी साहब को भावी उन्नति की सूचना देते। कानूनगो और कुर्कअमीन उनके द्वारपर बिना बुलाय मेहमान बने रहते। किसी को यन्त्र देते, किसी को भगवद्गीता सुनाते और जिन लोगों की श्रद्धा इन बातो पर न थी, उन्हें मीठे अचार और नवरत्नकी चटनी खिला कर प्रसन्न रखते। थानेदार साहब उन्हे अपना दाहिना हाथ समझते थे। जहाँ ऐसे उनकी दाल न गलती वहाँ पंण्डितजी की बदौलत पॉचों उँँगली घीमे हो जाती। भला ऐसे पुरुष की गाँव वाले क्यो न पूजा करते?

उमानाथ को अपनी बहन गंगाजली से बहुत प्रेम था लेकिन गंगाजली को मैके आने के थोड़े ही दिनो पीछे ज्ञात हुआ कि भाई का प्रेम भावज की अवज्ञा के सामने नहीं ठहर सकता। उमानाथ बहिन को अपने घर लानेपर मन में बहुत पछताते। वे अपनी स्त्री को प्रसन्न रखने के लिए ऊपरी मन से