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सेवासदन
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कोई दूसरा दाव निकालना चाहिए। बोले आप यह मानते है कि बाजार में वही वस्तु दिखाई देती है जिसके ग्राहक होते है और ग्राहकों न्यूनाधिक होने पर वस्तु का न्यूनाधिक होना निर्भर है।

बैजनाथ-—जी हां, इसमें कोई सन्देह नहीं।

पद्मसिंह-—इस विचार से किसी वस्तु के ग्राहक ही मानों उसके बाजार में आने के कारण होते है। यदि कोई मॉंस न खाय तो बकरे की गर्दन पर छुडी़ क्यों चले।

बैजनाथ समझ रहे थे कि यह मुझे किसी दूसरे पेंच में ला रहे है, लेकिन उन्होंने अभी तक उसका मर्म न समझा था। डरते हुए बोले, हाँ, बात तो यही है।

पद्म-जब आप यह मानते है तो आपको यह भी मानना पड़ेगा कि जो लोग वेश्याओं को बुलाते है, उन्हे धन देकर उनके लिए सुख विलास की सामग्री जुटाते और उन्हें ठाट-बाट से जीवन व्यतीत करने योग्य बनाते है, वे उस अधिकार से कम पाप के भागी नहीं है जो बकरे की गर्दन पर छुरी चलाता है। यदि में वकीलों को ठाट के साथ टमटम दौड़ाते हुए न देखता तो क्या आज से वकील होता?

बैजनाथ ने हंसकर कहा भैया, तुम घुमा फिराकर अपनी बात मनवा लेते हो, लेकिन बात जो कहते हो वह सच्ची है।

पद्म-—ऐसी अवस्था में क्या यह समझना कठिन है कि सैकड़ों स्त्रियाँ जो हर रोज बाजार में झरोखों में बैठी दिखाई देती है, जिन्होंने अपनी लज्जा और सतीत्व को नष्ट कर दिया है, उनके जीवन का सर्वनाश करने वाले ही लोग है। वह हजारों परिवार जो आये दिन इस कुवासना की भंवर में पड़कर विलुप्त हो जाते है, ईश्वर के दरबार हमारा ही दामन पकड़ेगे। जिस प्रथा से इतनी बुराइयाँ उत्पन्न हो उसका त्याग करना क्या अनुचित है?

मदनसिंह बड़े ध्यान से यह बातें सुन रहे थे। उन्होंने इतनी उच्च शिक्षा नहीं पाई थी जिससे मनुष्य विचार स्वातन्य की धुन में सामाजिक बन्धनों

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