ख्वान से मोठे लुकमें खाते है, खुशबूदार खमीरे के कश लगाते हैं और उनके खासदान से मुअत्तर बीड़े उड़ाते है। बस, इसलाम की मजही कूबते इसलाह यहीं तक खत्म हो जाती है। अपने बुरे फेलों पर नादिम होना इंसानी खासा है। ये गुमराह करते पेशतर नहीं तो शराब का नशा उतरने के बाद जरूर अपनी हालत पर अफसोस करती है, लेकिन उस वक्त उनका पछताना वे सूद होता है। उनके गुजरानी को इसके सवा और कोई सूरत नहीं रहती कि वे अपनी लड़कियों से दूसरों को दामे मुहब्वत में फसाएं और इस तरह यह सिलसिलां हमेशा जारी रहता है। अगर उन लड़कियों की जायज तौरपर शादी हो सके तो, और इसके साथ ही उनकी परवरिश की सूरत भी निकल आये तो मेरे ख्याल में ज्यादा नही तो ७५ फीसदी तवायफें इसे खुशी से कबूल कर लें। हम चाहे खुद कितने ही गुनहगार हों, पर अपनी औलाद को हम ने और रास्तबाज देखने की तमन्ना रखते है। तवायफों को शहर से खारिज कर देने से उनकी इसलाह नहीं हो सकती। इस खयाल को सामने रखकर तो में इखराज की तहरी पर एतराज करने की जुरअत कर सकता हूँ। पर पोलिटिकल मफाद की बिनापर में उसकी मुखालिफत नहीं कर सकता। में किसी फेल को कौमी ख्याल से पसन्दीदा नहीं समझता जो इखलाकी तौरपर पसन्दीदा न हो।
तेगअली--वन्दानवाज, संभलकर बातें कीजियें। ऐसा न हो कि आप पर कुफ्रका फतवा सादिर हो जाय। आजकल पोलिटिकल सफाद का जोर है, हक और इन्साफ का नाम न लीजिये। अगर आप मुदर्रिस है तो हिन्दू लड़कों को फेल कीजिये। तहसीलदार है तो हिन्दुओं पर टैक्स लगाये मजिस्ट्रेट है तो हिन्दुओं को सजाएँ दीजिये। सब इंस्पेक्टर पुलिस है तो, हिन्दुओं पर झूठे मुकदमें दायर कीजिये तहकीकात करने जाइये तो हिन्दुओं के बयान गलत लिखिये अगर आप चोर है तो किसी हिन्दू के घर डाका डालिये, अगर आपको हुस्न या इश्क का सब्त है तो किसी हिन्दू नाजनीन-को उड़ाइये तब आप कौम के सादिम, कौम के मुहसिन, कौमी किश्ती के नाखुदा सब कुछ हैं।