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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/१६१

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सेवासदन
 


किनारे बबूल की कलमें?—चील और कौए दोनों तरफ तख्तों पर बैठे अपना राग अलापते हों, और बुलबुले किसी गोशए तारीक में दर्द के तराने गाती हो। मैं इस तरहरीक की सख्त मुखालिफत करता हूँ। मैं उसे इस काबिल भी नहीं समझता कि उसपर साथ मतानत के साथ बहस की जाय।

हाजी हाशिम मुस्कराये, अबुलवफा की आँखे खुशी से चमकने लगी। अन्य महाशयों ने दार्शनिक मुस्कान के साथ यह हास्यपूर्ण वक्तृता सुनी, पर तेगअली इतने सहनशील न थे। तीव्र भाव से बोले, क्यों गरीब परवर, अबकी बोर्ड में यह तजबीज क्यों न पेश की जाय कि म्युनिसिपैलिटी ऐन चोक में खास एहतमाम के साथ मीनाबाजार आरास्ता करे और जो हजरात इस बाजार की सैरको तशरीफ ले जाय उन्हें गवर्नमेन्ट की जानिब से खुशनूदी मिजाज का परवाना अदा किया जाय? मेरे ख्याल से इस तजबीज की ताइद करने वाले बहुत निकल आयेंगे और इस तजवीज के मुहर्रिरका नाम हमेशा के लिये जिन्दा हो जायगा। उसके वकालत के बाद उसके मजार पर उर्स होगे और वह अपने गोशये लहद में पड़ा हुआ हुस्न की बहार लूटेगा और दलजीर नजमे सुनेगा।

मुन्शी अबदुल्लतीफ का मुँह लाल हो गया। हाजीहाशिम ने देखा कि बात बढ़ी जाती है, तो बोले, मैं अब तक सुना करता था कि उसूल भी कोई चीज है मगर आज मालूम हुआ कि वह महज एक वहम है। अभी बहुत दिन नहीं हुए कि आप ही लोग इस्लामी बजाएफका डेपुटेशन लेकर गए थे, मुसलमान कैदियों के मजहबी तसकीन की तजवीज कर रहे थे और अगर मेरा हाफिजा गलती नहीं करता तो आप ही लोग उन मौकों पर पेश नजर आते थे। मगर आज एकाएक यह इनकलाब नजर आता है। खैर आपका तलव्वुन आपको मुबारक रहे, बन्दा इतना सहज़ुलयकीन नहीं है। मैंने जिंदगी का यह उसूल बना लिया है कि बिरादरा ने वतन की हरएक तजबीज की मुखालिफत करूंगा, क्योंकि मुझे उससे किसी बेहबूदकी तवक्की नहीं है।

अबुलवफा ने कहा, अलाहाजा मुझे रात को आफताब का यकीन हो सकता है, पर हिन्दुओं की नेकनीयत पर यकीन नहीं हो सकता।