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सेवासदन
१९५
 


कृष्ण-इसका कोई प्रमाण ?

मदन-हाँ, है ।

कृष्ण—तो उसके बताने मे आपको क्यो सकोच होता है ?

मदन अच्छा, तो सुनिये,मुझे दोष न दीजियेगा, आपकी लड़की सुमन,जो इस कन्या की सगी बहन है,पतिता हो गई है । आपका जी चाहे तो उसे दालमंडी मे देख आइए।

कृष्णचंद्र ने अविश्वासकी चेष्टा करके कहा,यह बिल्कुल झूठ है। पर क्षणमात्रमे उन्हे याद आ गया कि जब उन्होंने उमानाथ से सुमन का पता पूछा था तो उन्होंने टाल दिया था, कितने ही ऐसे कटाक्षों का अर्थ समझ में आ गया जो जान्हवी बात बातमें उनपर करती रहती थी। विश्वास हो गया। उनका सिर लज्जासे झुक गया । वह अचेत होकर भूमिपर गिर पड़े ! दोनों तरफ सैकड़ों आदमी वहीं खड़े थे लेकिन सबके सब सन्नाटेमें आ गए ,इस विषय में किसीको मुंह खोलनेका साहस नहीं हुआ ।

आधी रात होतेहोते डेरे-खेमे सब उखड़ गये । उस बगीचेमे फिर अन्धकार छा गया । गीदड़ोंकी सभा होने लनी और उल्लू बोलने लये ।

३२

विठ्ठलदास ने सुमनको विधवाश्रम में गुप्त रीति से रखा था। प्रबन्ध-कारिणी सभा किसी भी सदस्य को इत्तला न दी थी। आश्रम की विधवाओसे उसे विधवा वताया था। लेकिन अबुलवफा जैसे टोहियोंसे यह बात बहुत दिनोंतक गुप्त न रही। उन्होंने हिरियाको ढूंढ़ निकाला और उससे सुमनका पता पूछा लिया। तब अपने अन्य रसिक मित्रों को भी इसकी सूचना दे दो। इसका यह परिणाम हुआ कि उन सज्जनों की आश्रमपर विशेष रीति से कृपादृष्टि होने लगी। कभी सेठ चिम्मनलाल आते,कभी सेठ बलभद्रदास,कभी पंडित दीनानाथ विराजमान हो जाते! इन महानुभावोंको अब आश्रम की सफाई और सजावट,उसकी आर्थिक दशा, उसके प्रबंध आदि