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सेवासदन
 


मालूम होता है, वह अपने सद्व्यवहार से अपनी कालिमा को धोना चाहती है। सब काम करने को तैयार और प्रसन्न चित्त से। अन्य स्त्रियाँ सोती ही रहती है और वह उनके कमरों से झाड़ू दे जाती है। कई विधवाओं को सीना सिखाती है, कई उससे गाना सीखती है। सब प्रत्येक बात में उसी की राय लेती है। इस चहारदिवारी के भीतर अब उसी का राज्य है। मुझे कदापि ऐसी आशा न थी। यहाँ उसने कुछ पढ़ना भी शुरू कर दिया है। और भाई मनका हाल तो ईश्वर जानें, देखने में तो अब उसका बिलकुल कायापलट सा ही गया है।

पद्म-नहीं, साहब, वह स्वभावकी बुरी स्त्री नहीं है। मेरे यहाँ महीनो आती रही थी। मेरे घर में उसकी बड़ी प्रशंसा किया करती थीं(यह कहते-कहते झेंंप गये), कुछ ऐसे कुसंस्कार ही हो गये जिन्होने उससे यह अभिनय कराये। सच पूछिये तो हमारे पापों का दण्ड उसे भोगना पड़ा। हाँ, कुछ उधर का समाचार भी मिला? सेठ बलभद्रदास ने और कोई चाल चली?

विठटल हाँ- साहब, वे चुप बैठनेवाले आदमी नहीं है? आजकल खूब दौड़-धूप हो रही है। दो तीन दिन हुए हिन्दू मेम्बरों की एक सभा भी हुई थी। मैं तो जा न सका, पर विजय उन्हीं लोगों की रही। अब प्रधान के २ वोट मिलाकर उनके पास ६ वोट है और हमारे पास कुल ४ मुसलमानों के वोट मिलाकर बराबर हो जायगे।

पद्म-—तो हमको कम से कम एक वोट मिलना चाहिए। है इसकी कोई आशा?

विठटल— मुझे तों कोई आशा नहीं मालूम होती।

पद्म-अवकाश हो तो चलिय, जरा डाक्टर साहब और लाला भगतराम के पास चले।

विठ्ठल--हाँ, चलिये, मैं तैयार हूँ।

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यद्यपि डाक्टर साहब का बंगला निकट ही था, पर इन दोनों आदमियों ने