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सेवासदन
 


सदा बहार होती है। वही हँसी-दिल्लगी, वही तेल फुलेलका शौक। लोग जवान ही रहते है और, जवान ही मर जाते है।

गंगा-कुल कैसा है?

उमा-बहुत ऊँचा। हमसे भी दो विश्वे बडा है। पसन्द है न? गगाजलीने उदासीनभाव से कहा, जब तुम्हें पसन्द है तो मुझे भी पसन्द ही है।


फागन में सुमन का विवाह हो गया। गगाजली दामाद को देखकर बहुत रोई। उसे ऐसा दुःख हुआ, मानो किसी ने सुमन को कुएँ मे डाल दिया।

सुमन ससुराल आई तो यहाँ की अवस्था उससे भी बुरी पाई जिसकी उसने कल्पना की थी। मकान मे केवल दो कोठरिया और एक सायवान। दीवारो मे चारो ओर लोनी लगी हुई थी। बाहर से नालियों की दुर्गन्ध आती रहती थी, धूप और प्रकाश का कही गुजर नही। इस घर का किराया ३) महीना देना पड़ता था।

सुमन के दो महीने तो आराम से कटे। गजाधर की एक बूढी फुआ घर का सारा काम-काज करती थी। लेकिन गर्मियों में शहर मे हैजा फैला। और बुढिया चल बसी। अब वह बड़े फेर मे पड़ी। चौका बरतन करने के लिए महरियां ३) रुपया से कम पर राजी न होती थी। दो दिन घर में चूल्हा नही जला। गजाधर सुमन से कुछ न कह सकता था। दोनो दिन बाजार से पूरिया लाया, वह सुमन को प्रसन्न रखना चाहता था। उसके रूप-लावण्यपर मुग्ध हो गया था। तीसरे दिन वह घडी रात को उठा। और सारे बरतन माज डाले, चौका लगा दिया, कल से पानी भर लाया। सुमन जब सोकर उठी तो यह कौतुक देखकर दंग रह गई। समझ गई कि इन्हीने सारा काम किया है। लज्जाके मारे उसने कुछ न पूछा। सन्ध्या को उसने आप ही सारा काम किया। बरतन मांजती थी और रोती जाती थी।