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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/२२२

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सेवासदन
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आई। मन में सोचा, भाई साहब ऐसे मूर्ख नहीं है कि इस धर्म — कार्य के लिये मुझसे अप्रसन्न हो और यदि हो भी जायँ तो मुझे इसकी चिन्ता न करनी चाहिये।

विट्ठल — तो आज ही तार दे दीजिये।

पद्म — लेकिन यह सरासर जालसाजी होगी।

विट्ठल — हाँ, होगी तो, आप ही समझिये।

पद्म — मैं ही चलूँँ तो कैसा हो?

विट्ठल — बहुत ही उत्तम, सारा काम ही बन जाय।

पद्म — अच्छी बात है, मैं और आप दोनों चले।

विट्ठल — तो कब?

पद्म — बस, आज तार देता हूँ कि हम लोग शान्ता को विदा कराने आ रहे है, परसो सन्ध्या की गाड़ी से चले चले।

विट्ठल — निश्चय हो गया?

पद्म — हाँ निश्चय हो गया। आप मेरा कान पकड़कर ले जाइयेगा।

विट्ठलदास ने अपने सरल-हदय मित्र की ओर प्रशंसा की दृष्टि से देखा और दोनो मनुष्य जलतरंग सुनने जा बैठे, जिसकी मनोहर ध्वनि आकाश में गूँज रही थी।

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जब हम स्वास्थ्यलाभ करने के लिये किसी पहाड़पर जाते है तो इस बात का विशेष यत्न करते है कि हमसे कोई कुपथ्य न हो। नियमितरूपसे व्यायाम करते है, आरोग्य का उद्देश्य सदैव हमारे सामने रहता है। सुमन विधवाश्रम में आत्मिक स्वास्थ्यलाभ करने गई थी और अभीष्ट को एक क्षण के लिये भी न भूलती थी। वह अपनी अन्य बहनो की सेवा में तत्पर रहती और धार्मिक पुस्तके पढ़ती। देवोपासना, स्नानादि में उसके व्यथित हृदय को शान्ति मिलती थी।

विट्ठलदास ने अमोला के समाचार उससे छिपा रखे थे, लेकिन जब