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सेवासदन
 


रही थी। चारो ओर से दर्शक आने लगे। कोई वाइसिकिल पर आता था, कोई टमटम पर, कोई पैदल, थोड़ी देर में दो तीन फिटने भी आ पहुंची और उनमें कई बाबू लोग उतर पड़े। एक घण्टे में सारा आंगन भर गया। कई से मनुष्यो का जमाव हो गया। फिर मौलाना साहब की सवारी आई। उनके चेहरे से प्रतिभा झलक रही थी। वह सजे हुए सिंहासन-पर मसनद लगाकर बैठ गये और मौलूद होने लगा। कई आदमी मेहमानो का स्वागत-सत्कार कर रहे थे। कोई गुलाब छिड़क रहा था, कोई खास दान पेश करता था। सभ्य पुरुषो का ऐसा समूह सुमन ने कभी न देखा था।

नौ बजे गजाधर प्रसाद आये। सुमन ने उन्हें भोजन कराया। भोजन करके गजाधर भी जाकर उसी मण्डली में बैठे। सुमन को तो खाने की भी सुझ न रही। बारह बजे रात तक वह वही बैठी रही-यहाँ तक कि मौलूद समाप्त हो गया। फिर मिठाई बँटी और बारह बजे सभा विसर्जित हुई। गजाधर घर मे आये तो सुमन ने कहा, यह सब कौन लोग बैठे हुए थे?

गजाधर-में सबको पहचानता थोड़े ही हुँ। पर भले-बुरे सभी थे। शहर के कई रईस भी थे।

सुमन- क्या यह लोग वेश्या के घर आने मे अपना अपमान नही समझते?

गजाधर—अपमान समझते तो आते ही क्यों?

सुमन-तुम्हें तो वहाँ जाते हुए संकोच हुआ होगा?

गजाधर-जब इतने भले मानुस बैठे हुए थे तो मुझे क्यो संकोच होने लगा। वह सेठजी भी आये हुए थे जिनके यहाँ मै शाम को काम करने जाया करता हूँ।

सुमन ने विचार पूर्ण भाव से कहा,-मैं समझती थी कि वेश्याओ को लोग बडी घृणा की दृष्टि से देखते हैं।

गजाधर—हाँ, ऐसे मनुष्य भी है, गिने-गिनाये। पर अंगरे जी शिक्षा ने लोगों को उदार बना दिया है। वेश्याओ का अब उतना तिरस्कार नही किया जाता। फिर भोली वाई का शहर मे बड़ा मान है।