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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/२५८

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सेवासदन
३०५
 


रातभर किसी को खबर न हुई। सबेरे चौकीदार ने आकर विट्ठल से यह समाचार कह। वह घबराये और लपके हुए सुमन के कमरे में गये। सब चीजें पड़ी हुई थीं केवल दोनों बहनों का पता न था। बेचारे बड़ी चिंता में पड़े। पद्मसिंह को कैसे मुँह दिखाऊँगा? उन्हें उस समय सुमन पर क्रोध आया । यह सब उसी की करतूत है, वही शान्ता को बहकाकर ले गये हैं। एकाएक उन्हे सुमन की चारपाईपर एक पत्र पड़ा हुआ दिखाई दिया। लपककर उठा लिया और पढ़ने लगे। यह पत्र सुमन ने चलते समय लिखकर रख दिया था। इसे पढ़कर विट्ठलदास को कुछ धैर्य हुआ। लेकिन इसके साथ ही उन्हें यह दुःख हुआ कि सुमनके कारण मुझे नीचा देखना पड़ा। उन्होंने निश्चय कर लिया था कि मैं अपने धमकी देनेवालों को नीचा दिखाऊँगा, पर यह अवसर उनके हाथसे निकल गया, अब लोगो समझगे कि मैं डर गया,यह सोचकर उन्हें बहुत दुःख हुआ।

आखिर वह कमरे से निकले। दरवाजे बन्द कराये और सीधे पद्मसिंह के घर पहुंँचे ।

शर्माजीने यह समाचार सुना तो सन्नाटे में आ गये। बोले, अब क्या होगा ?

विठ्ठल— वे अमोला पहुँच गई होगी।

शर्मा— हाँ, सम्भव है।

विट्ठल— सुमन इतनी दूर सफर तो मजे में कर सकती है।

शर्मा— हाँ, ऐसी नासमझ तो नहीं है।

विट्ठल— सुमन तो अमोला गयी न होगी।

शर्मा— हांँ, कौन जाने, दोनों कही डूब मरी हों।

विट्ठल— एक तार भेजकर पूछ क्यों न लीजिए।

शर्मा— कौन मुंह लेकर पूछूं? जब मुझसे इतना भी न हो सका कि शांता की रक्षा करता, तो अब उसके विषय में कुछ पूछ-ताछ करना मेरे लिए लज्जाजनक है। मुझे आपके ऊपर विश्वास था। अगर जानता कि आप ऐसी लापरवाही करेंगे तो उसे मैंने अपने ही घर में रखा होता।