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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/२६३

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सेवासदन
 


शर्मा--वहाँ लच्छेदार बातों और तीव्र समालोचनाओें के सिवा और क्या रखा है?

५०

सदन सिंह का विवाह संस्कार हो गया? झोपड़ा खूब सजाया गया था। वही मंडप का काम दे रहा था, लेकिन कोई भीड़ भाड़ न थी।

पद्मसिंह उसी दिन घर चले गये और मदनसिंह से सब समाचार कहा। वह यह सुनते ही आग हो गये, बोले, मैं उस छोकरे का सिर काट लूँगा, वह अपने को समझता क्या है? भामा ने कहा, मैं आज ही जाती हूँ उसे समझाकर अपने साथ लिवा लाऊँगी। अभी नादान लड़का है। उस कुटनी सुमन की बातों मे आ गया है। मेरा कहना वह कभी न टालेगा।

लेकिन मदनसिंह ने भामा को डाँटा और धमका कर कहा, अगर तुमने उधर जाने का नाम लिया तो मैं अपना और तुम्हारा गला एक साथ ही घोंट दूंँगा। वह आग में कूदता है कूदने दो। ऐसा दूध पीता नादान बच्चा नहीं है। यह सब उसकी जिद्द है। बच्चू को भीख मगाकर न छोड़ूँ तो कहना। सोचते होगे दादा मर जायेंगे तो आनन्द करेगा। मुंँह घो रखें, यह कोई जायदाद नहीं है। यह मेरी अपनी कमाई है। सब-की-सब कृष्णार्पण कर दूँगा। एक फूटी कौड़ी तो मिलेगी ही नहीं।

गाँव में चारो ओर बतकहाव होने लगा। लाला बैजनाथ को निश्चय हो गया कि संसार से धर्म उठ गया। जब लोग ऐसे-ऐसे नीच कर्म करने लगे तो धर्म कहांँ रहा? न हुई नवाबी, नहीं तो आज बचूकी धज्जियाँ उड़ जाती। अब देखें कौन मुँह लेकर गाँव में आते है।

पद्मसिंह रात को बहुत देरतक भाई के साथ बैठे रहे, लेकिन ज्योंही वह सदन का कुछ जिक्र छेड़ते, मदनसिंह उनकी ओर ऐसी आग्नेय दृष्टिय देखते कि उन्हें बोलने की हिम्मत न पड़ती। अन्त में जब वह सोने चले तो पद्मसिंह ने हताश होकर कहा, भैया, सदन आपसे अलग रहे तब भी आपका लड़का ही कहलावेगा। वह जो कुछ नेक बद करेगा उसकी बदनमी हम सब पर आवेगी। जो लोग इस अवस्था को भलीभाँति जानते है, वह चाहे