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सेवासदन
 


लिए उन्होंने अपने सिद्धान्तों की भी परवाह न की और अपन सहवर्गियों में बदनाम हुए, वह अपराध लग ही गया। इतना ही नहीं, भाई के हृदय उनकी ओर से मैल पड़ गई। अब उन्हें अपनी भूल दिखाई दे रही थी। निस्संदेह अगर उन्होंने बुद्धिमानी से काम लिया होता तो यह नौवत न आती। लेकिन इस वेदना में इस विचार से कुछ सन्तोष होता था कि जो कुछ हुआ सो हुआ एक अबला का उद्धार तो हो गया।

प्रातःकल जब वह घर से चलने लगें तो भामा रोती हुई आई और बोली, भैया, इनका हठ तो देख रहे हो, लड़के की जान ही लेने पर उतारू है, लेकिन तुम जरा सोच-समझकर काम करना। भूल चूक तो बड़े बड़ो से हो जाती है, वह बेचारा तो अभी नादान लड़का है। तुम उसकी ओर से मन न मोटा करना। उसे किसी की टेढ़ी निगाह भी सहन नहीं है। ऐसा न हो, कहीं देश विदेश की राह ले तो तो मैं कही की न रहूँ, उसकी सुध लेते रहना। खाने पीने की तकलीफ न होने पाये। यहाँ रहता था तो एक भैंस का दूध पी जाता था, उसे दाल में घी अच्छा नहीं लगता, लेकिन में उससे छिपाकर लोदे के लोदे दाल में डाल देती थी। अब इतना सेवा जतन कौन करेगा। न जाने बेचारा कैसे होगा? यहाँ घर पर कोई खानेवाला नहीं, वहाँ वह इन्हीं चीजों के लिए तरसता होगा। क्यों भैया, क्या अपने हाथ से नाव चलाता है।

पद्म--नहीं, दो मल्लाह रख लिए है।

भामा--तब भी दिनभर दौड़-धूप तो करनी ही पड़ती होगी। मजूर बिना देख-भाले थोड़े ही काम करते है मेरा तो यहाँ कुछ बस नहीं है, उसे तुम्हें सौंपती हैं। उसे अनाथ समझकर खोज खबर लेते रहना। मेरा रोंआ रोंआ तुम्हे आशीर्वाद देगा। अबकी कार्तिक-स्नान उसे जरूर से देखने जाऊँगी। कह देना, तुम्हरी अम्माँ तुम्हे बहुत याद करती थी, बहुत रोती थीं। यह सुनकर उसे ढाढस हो जायगा। उसका जी बड़ा कच्चा है। मुझे याद करके रोज रोता होगा। यह थोड़े से रुपये है, लेते जाओ, उसके पास भिजवा देना।