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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/२७६

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सेवासदन
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महबूब जान एक धनसम्पन्न वेश्या थी। उसने अपना सर्वस्व अनाथालय के लिये दान कर दिया था। सन्ध्या समय सब वेश्याएँ उसके मकान पर एकत्रित हुई, वहाँ एक महती सभा हुई। शाहजादी ने कहा, बहनों, आज हमारी जिंदगी का एक नया दौर शुरू होता है। खुदाताला हमारे इरादे में बरकत दे और हमे नेक रास्ते पर ले जाय। हमने बहुत दिन बे-शर्मी और जिल्लतकी जिन्दगी बसर की, बहुत दिन शैतान की कद में रही। बहुत दिनों तक अपनी रूह (आत्मा) और ईमान का खून किया और बहुत दिनों तक मस्ती और ऐश परस्ती में भूली रही। इस दालमण्डी की जमीन हमारे गुनाहो से सियाह हो रही है। आज खुदाबंद करीम ने हमारी हालत पर रहम करके कदगुनाहसे निजात् (मुक्ति) दी है, इसके लिये हमे उसका शुक्र करना चाहिये। इसमें शक नहीं, कि हमारी कुछ बहनों को यहाँ से जलावतन होने का कलंक होता होगा, और इसमें भी शक नहीं है कि उन्हें आनेवाले दिन तारीक नजर आते होंगे। उन बहनो से मेरा यही इल्तमास है कि खुदाने रिज्क (जीविका) का दरवाजा किसी पर बन्द नहीं किया है। आपके पास वह हुनर है कि उसके कदरदाँ हमेशा रहेगें। लेकिन अगर हमको आइन्दा तकलीफें भी हों तो हमको साबिर व शाकिर (शान्त) रहना चाहिये। हमे आइन्दा जितनी ही तकलीफें होगी उतना ही हमारे गुनाहों का बोझ हलका होगा। मैं फिर खुदा से दुआ करती हूँ कि वह हमारे दिलों को अपनी रौशनी से रौशन करे और हमें राहे नेक पर लाने की तौफीक (सामर्थ) दे।

रामभोली बाई बोली, हमे पंण्डित पद्मसिंह शर्मा को हृदय से धन्यबाद देना चाहिये, जिन्होंने हमको धर्म मार्ग दिखाया है। उन्हे परमात्मा सद सुखी रखे।

जहराजान बोलो, मैं अपनी बहनों से यही कहना चाहती हूँ कि वह आइन्दा से हलाल हराम का ख्याल रखें। गाना बजाना हमारे लिये हलाल है। इसी हुनर में कमाल हासिल करो। बदकार रईसों की शुरूवत (कासातुरता) का खिलौना बनना छोड़ना चाहिये। बहुत दिनों तक