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पृष्ठ:सेवासदन.djvu/७५

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सेवासदन
 

यहां चली आई। जब हिन्दू जाति को खुदही लाज नही है तो फिर हम जैसी अबलाएँ उसकी रक्षा कहाँ तक कर सकती है।

विट्ठलदास—सुमन, तुम सच कहती हो, बेशक हिन्दू जाति अधोगति को पहुँँच गई, और अब तक वह कभी भी नष्ट हो गई होती, पर हिन्दू स्त्रियों ही ने अभी तक उसकी मर्यादा की रक्षा की है। उन्ही के सत्य और सुकीर्ति ने उसे बचाया है। केवल हिन्दुओं की लाज रखने के लिए लाखों स्त्रियाँ आग में भस्म हो गई है। यही वह विलक्षण भूमि है जहाँ स्त्रियाँ नाना प्रकार के कष्ट भोगकर, अपमान और निरादर सहकर पुरुषों की अमानुषीय क्रूरताओं को चित्त में न लाकर हिन्दू जाति का मुख उज्ज्वल करती थी। यह साधारण स्त्रियों का गुण था और ब्राह्मणियों का तो पूछना ही क्या? पर शोक है कि वही देवियाँ अब इस भाँति मर्यादा का त्याग करने लगी। सुमन, मैं स्वीकार करता हूँ कि तुमको घर पर बहुत कष्ट था, माना कि तुम्हारा पति दरिद्र था, क्रोधी था, चरित्रहीन था, माना कि उसने तुम्हें अपने घर से निकाल दिया था, लेकिन ब्राह्मणी अपनी जाति और कुलके नामपर यह सब दुख झेलती है, आपत्तियों का झेलना और दुरवस्था में स्थिर रहना यही सच्ची ब्राह्मणियों का धर्म है, पर तुमने वह किया जो नीच जाति की कुलटायें किया करती है, पति से रूठकर मैके भागती, और मैके में निबाह न हुआ तो चकलेकी राह लेती है। सोचो तो कितने खेद की बात हैकि जिस अवस्था मे तुम्हारी लाखों बहन हंसी-खुशी जीवन व्यतीत कर रही है, वही अवस्था तुम्हें इतनी असह्य हुई कि तुमने लोकलाज, कूल-मर्यादा को लात मार कर कुपथ ग्रहण किया। क्या तुमने ऐसी स्त्रियाँ नही देखी जो तुमसे कही दीन, हीन, दरिद्र, दुखी है? पर ऐसे कुविचार उनके पास नहीं फटकने पाते, नही आज यह स्वर्गभूमि नरक के समान हो जाती। सुमन, तुम्हारे इस कर्मने ब्राह्मण जाति का नही, समस्त हिन्दू जाति का मस्तक नीचा कर दिया।

सुमन की आँख सजल थी। लज्जा से सिर न उठा सकी। विट्ठलदास फिर बोले! इसमें सन्देह नहीं कि यहाँ तुम्हें भोग विलास की सामग्रियां