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सेवासदन
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उचककर आकाशसे तारे तोड़ने की चेष्टा करता हूँ। अतएव वह कोई मूल्यवान् प्रेमोपहार देनेकी चिन्ता मे लीन हो गया। मगर महीनों तक उसे इसका कोई अवसर न मिला।

एक दिन वह नहाने बैठा, तो साबुन न था। वह भीतर के स्नानालय में साबुन लेने गया । अन्दर पैर रखते ही उसकी निगाह ताकपर पड़ी, उसपर एक कंगन रखा हुआ था। सुभद्रा अभी नहाकर गई थी, उसने कंगन उतारकर रख दिया था, लेकिन चलते समय उसकी सुध न रही। कचहरीका समय निकट था, वह रसोई में चली गई । कंगन वही धरा रह गया। सदनने उसे देखते ही लपकर उठा लिया। इस समय उसके मनमे कोई बुरा भाव न था? उसने सोचा, चाचीको खूब हैरान करके तब दूंगा; अच्छी दिल्लगी रहेगी। कंगनको छिपाकर बाहर लाया और संदूक में रख दिया। सुभद्रा भोजन से निवृत होकर लेट रही, आलस्य आया, सोई तो तीसरे पहरको उठी। इसी बीच में पंडितजी कचहरी से आ गये, उनसे बातचीत करने लगी, कंगन का ध्यान ही न रहा। सदन कई बार भीतर गया कि देखू इसकी कोई चर्चा हो रही है या नहीं, लेकिन उसका कोई जिक्र न सुनाई दिया। सन्ध्या समय जब वह सैर करने के लिये तैयार हुआ तो एक आकस्मिक विचारसे प्रेरित होकर उसने वह कंगन जेब में रख लिया । उसने सोचा, क्यों न यह कंगन सुमनबाई की नजर करूँ ? यहाँ तो मुझसे कोई पूछेगा ही नहीं और अगर पूछा भी गया तो कह दूंगा, मैं नहीं जानता। चाची समझेगी नौकरों में से कोई उठा ले गया होगा। इस तरह के कुविचारों ने उसका संकल्प दृढ़ कर दिया । उसका जी कही सैर करने मे न लगा । वह उपहार देने के लिए व्याकुल हो रहा था । नियमित समय से कुछ पहले ही घोड़े को दालमंडी की तरफ फेर दिया । यहाँ उसने एक छोटा सा मखमली बक्स लिया, उसमें कंगन को रखकर सुमनके यहाँ जा पहुँचा । वह इस बहुमूल्य वस्तुको इस प्रकार भेट करना चाहता था मानो वह कोई अति सामान्य वस्तु दे रहा हो । आज वह बहुत देर तक बैठा रहा। सन्ध्या का समय उसने उसके लिये निकाल रखा था किन्तु आज प्रेमालाप में भी उसका जी न लगता था। उसे चिंता