प्रस्ताव तो बहुत उत्तम है, लेकिन यह बताइये, सुमन को आप रखना कहाँ चाहते है?
बिट्ठलदास—विधवाश्रम में।
बलभद्र-आश्रम सारे नगर में बदनाम हो जायेगा, और संभव है कि अन्य विधवाये भी छोड़ भागे।
बिट्ठल मैं-तो अलग मकान लेकर रख दूँगा।
बलभद्र-मुहल्ले के नवयुवकों मे छुरी चल जायगी।
विठ्ठल-तो फिर आप ही कोई उपाय बताइये।
बलभद्र-मेरी सम्पत्ति तो यह है कि आप इस तामझाम में न पड़े। जिस स्त्री को लोकनिंदा की लाज नही, उसे कोई शक्ति नही सुधार सकती। यह नियम है कि जब हमारा कोई अगं विकृत होता है तो उसे काट डालते हैं, जिससे उसका विष समस्त शरीर को नष्ट न कर डाले। समाज में भी उसी नियम का पालना करना चाहिए। मैं देखता हूँ कि आप मुझसे सहमत नहीं है, लेकिन मेरा जो कछ विचार था वह मैने स्पष्ट कह दिया। आश्रम की प्रबन्धकारिणी सभा का एक मेम्बर में भी तो हूँ? मैं किसी तरह इस बेश्या को आश्रम में रखने की सलाह न दूँगा।
बिट्ठलदास ने रोष से कहा सारांश यह कि इस काम में आप मुझे कोई सहायता नही दे सकते? अब आप जैसे महापुरुषो का यह हाल है। तो दूसरो से क्या आशा हो सकती है। मैंने आपका बहुत समय नष्ट किया, इसके लिये मुझे क्षमा कीजियेगा।
यह कहकर बिट्ठलदास उठ खड़े हुए ओर सेठ चिम्मनलाल की सेवा में पहुँचे। यह सॉवले रगं के बेडौल मनुष्य थे। बहुत ही स्थूल ढीले ढाले, शरीर से हाड़ की जगह माँस और माँस की जगह वायु भरी हुई थी। उनके विचार भी शरीर के समान बेडौल थे। वह ऋषि-धर्म-सभा के सभापति, रामलीला कमेटी चेयरमैन और रासलीला परिषद् के प्रबंधकर्त्ता थे। राजनीति को विषभरा साँप समझते थे और समाचार पत्रो को साँप की बांबी। उच्च अधिकारियो से मिलने की धुन थी। अंग्रजों समाज से उनका