पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१०४

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एक भारतीय राज्य दूसरे से लड़ता रहता है । इसलिए उसने यह नीति अपनाई कि उनके झगड़े के बीच में पड़ कर तुल्य-भारता कायम करे। जब अठारहवीं शताब्दि के मध्य भाग में पहले-पहल फैन्चों ने निज़ामुल- मुल्क के मामलों में हस्तक्षेप किया, उस समय भारत में नितान्त राजनैतिक मृतक अवस्था थी। जो अब पचास बरस बीत जाने पर भी कायम है। इसी से यह चमत्कार सम्भव हुआ कि हम भारत को उन सेनाओं द्वारा जीत रहे हैं जिन में एक अंग्रेज़ सैनिक है और पाँच देशी सैनिक ।" "बेशक ऐसा ही है।" "फिर आप यह देखते हैं कि विदेशियों के प्रति भारत में कोई खास घृणा के भाव नहीं रहे । और हक़ीक़त तो यह है कि अंग्रेजों ने भारत में पहली ही बार विदेशी राज्य की स्थापना नहीं की है। वह तो पहले से ही यहाँ मौजूद थे। केवल यही बात नहीं-कि ग्यारहवीं शताब्दि से मुसलमानों के अाक्रमण हुए हैं, इस से बहुत पहले से ही यहां अनेक जातियों का मिश्रण हो चुका है । पार्यों में जातीय एकता ज़रूर थी। परन्तु भारत को ऐक्य तो आर्य लोग भी नहीं दे सके । क्योंकि आर्येतर जातियाँ उनसे अन्ततः पृथक् रहीं । और इस समय तो हिन्दुओं की स्थिति ऐसी है कि समूचा हिन्दू-धर्म मिथ्या-विश्वासों को एकता का रूप दे रहा है। इसलिए भारत में वह वातावरण नहीं है, न था, जिस पर पश्चिम का राजनीति-शास्त्र अवलम्बित है। मुग़लों के उत्थान से बहुत पहले ही भारत में अनेक मुस्लिम राज्य स्थापित हो चुके थे, जिन्होंने भारतीय राज्यों के राष्ट्रीयता के बन्धन तोड़ दिए थे। और कोई राज्य देश-भक्ति के नाम पर अपील कर सकने योग्य न था । इसलिए अंग्रेज़ों के हाथ में भारतीय जन शासन का अधिकार प्राना भारतीय जनता का एक विदेशी दासता से निकल कर दूसरी विदेशी दासता में फंसना मात्र है ।" "तो इसका मूल कारण यह है कि भारत में राष्ट्रीय ऐक्य उदय ही ?" "नहीं तो क्या ? आप देख ही रहे हैं कि सारे भारत में ऐसी बहुत- नहीं हुआ १०७