पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१०३

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कारण इस क़दर कर्जदार हो गया है कि वह कभी अपना कर्जा चुका ही नहीं सकता-वहाँ भारतीय युद्धों ने न तो ब्रिटेन का राष्ट्रीय ऋण बढ़ाया है, न हानि का कोई चिन्ह पीछे छोड़ा है।" “यह तो एक ऐसी चमत्कारिक बात है महोदय, कि विश्व के इति- हास में अद्वितीय है, परन्तु क्या आप इस के कारणों पर भी प्रकाश डालेंगे।" "इसमें एक भेद है मेजर फेजर, पोशीदा भेद ।" "क्या बहुत ही पोशीदा ?" "हाँ, उसे दुनिया के बहुत कम आदमी जान पायेंगे।" "क्या मैं उसे जान सकता हूँ ?" "क्यों नहीं, वह भेद यह है कि भारत को हमने नहीं हराया है। भारत ने स्वयं ही अपने को हराया है।" “वाह, यह कैसी बात।" "ध्यान से सुनिए यह बात मेजर फेज़र, बड़ी गम्भीर बात है। भारत के पराजित होने का कारण यह है कि 'भारत' केवल एक भौगोलिक नाम है—वह राजनीतिक ज्ञान पूर्ण कोई राष्ट्र नहीं है । देखिए-नेपोलियन ने किस आसानी से इटली और जर्मनी को अपना शिकार बना डाला। क्यों- कि अभी तक भी इन देशों में राष्ट्रीय भावना नहीं है । इसी से बोनापार्ट एक जर्मन राज्य को दूसरे जर्मन राज्य के विरुद्ध खड़ा कर सका। इसी से प्रशिया और आस्ट्रिया से लड़ने के लिए बवेरिया और बर्टेमबर्ग उसके साथी हो गए।" "यह बात तो वास्तव में महत्त्वपूर्ण है।" "जिस तरह नेपोलियन ने देखा कि मध्य यूरोप में विजय प्राप्त करने का यह साधन तैयार है। उसी तरह, फैन्च डुप्ले ने अपनी पैनी बुद्धि से अंग्रेज़ों से पहले ही यह देख लिया था कि भारत में भी साम्राज्य स्थापित करने के लिए यह मार्ग किसी भी यूरोपियन राष्ट्र के लिए खुला पड़ा है। उसे समझ लेने में देर न लगी कि भारत की अवस्था ही ऐसी है । वहाँ १०६