पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११०

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को खस्सी करके मराठों को अकेला कर दिया। इसके बाद एक के बाद दो तीन युद्ध करके पूना का छत्र भंग कर दिया। पानीपत की पराजय के बाद मराठा शासन ने एक संघ राज्य का रूप धारण कर लिया था । ग्वालियर में सिंधिया, बड़ौदा में गायकवाड़, और इन्दौर में होल्कर जो वास्तव में पूना दर्बार के सेवक और सेना- नायक थे-स्वतन्त्र शासक बन बैठे थे। फिर भी वे पूना की प्रभुता स्वी- कार करते रहे । पर देर तक यह व्यवस्था चली नहीं। सब से पहले गायकवाड़ को, अंग्रेजों ने पूना दर्बार से तोड़ लिया । अब पूना दर्बार का एक मात्र सहारा सिंधिया माधोजी था। शताब्दी के भारतीय राजनैतिक जीवन में माधोजी सिंधिया एक ऐसी प्रबल शक्ति थी, जिसकी प्रतिक्रिया, दिल्ली से कलकत्ता और पूना तक एक समान प्रभाव रखती थी। वह एक प्रबल कूटनीतिज्ञ योद्धा और अपने समय का एक प्रतिनिधि व्यक्ति था । माधोजी का पिता रानोजी सिंधिया पेशवा बालाजी राव का एक सेवक था, जिसका काम पेशवा के जूते सम्हालना था। पेशवा ने प्रसन्न होकर उसे सेना में एक ऊँचे पद पर प्रतिष्ठित कर दिया था और जब पेशवा ने मालवा जीत कर उसे दो भागों में विभक्त कर दिया तो उसने रानोजी को ग्वालियर का सूबेदार बना दिया। यही सिंधिया वंश का प्रथम पुरुष था। माधोजी रानोजी का जारज पुत्र था । रानोजी की मृत्यु पर अपने साहस और कूटनीति से उसे ही सूबेदारी मिली, बाद में उसने पानीपत की लड़ाई में ग्वालियर की सेना के असाधारण सेनापतित्व का परिचय दिया। उस काल पानीपत का वह संग्राम एक खण्ड प्रलय था, जिसमें दो लाख मराठे खेत रहे। माधोजी सिंधिया उन भाग्यशाली मराठा सरदारों में से थे जो जीवित बच कर लौटे, पर लंगड़े हो गए । परन्तु इसके बाद कूटनीति और युद्धनीति में वे अद्वितीय योद्धा का स्थान ग्रहण करते रहे। ११३