पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१०९

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- थी। यह प्रणाली एक धोखे की टट्टी थी। उस का उद्देश्य इंगलैंड की जनता की आँखों में धूल झोंकना था। इस तरह ये रियासतें विजय नहीं की जाती थीं। वहाँ के राजाओं को छत्र-चंवर आदि राजचिन्हों सहित गद्दी पर रहने दिया जाता था, परन्तु असली ताक़त उनके हाथों से लेकर एक पोलीटिकल एजेन्ट के हाथों में चली जाती थी। इस राजनैतिक चाल से वेल्ज़ली ने जिस प्रकार भारत के मुसलमानों-राजपूतों और मराठों को वश में किया, निज़ाम और पेशवा को फंसा कर उन्हें कम्पनी का कैदी बनाया, कर्नाटक के नवाब, तंजौर के राजा, अवध के नवाब-वज़ीर और सूरत और फरुखाबाद के नवाबों के इलाक़ छीने तथा टीपू, सिंधिया, होल्कर और भोंसले को बर्बाद किया, उन सब काले कारनामों को आप इतिहास के पृष्ठों में पढ़ सकते हैं। लार्ड वेल्ज़ली ई० स० १७६८ से १८०५ तक ७ वर्ष गवर्नर-जनरल रहा। जब वह गवर्नर जनरल बनकर आया था तब भारत में ईस्ट इण्डिया कम्पनी का भी एक राज्य था- पर जब वह लौटा तो, भारत में केवल ईस्ट इण्डिया कम्पनी ही का एक साम्राज्य था। और अब ईस्ट इण्डिया कम्पनी एक व्यापारी संस्था न थी-एक राजनैतिक शक्ति थी। जिस समय वेल्ज़ली गवर्नर-जनरल बन कर आया था तब भारतीय राजनीति के तीन मध्य बिन्दु थे, पूना, दिल्ली और कलकत्ता । पूना मराठाशाही का केन्द्र था, दिल्ली में मुग़ल सम्राट् थे और कलकत्ते में कम्पनी के गवर्नर-जनरल । परन्तु सात वर्ष बाद जब वह लौटा तो कलकत्ता ही भारत का मुख्य केन्द्र बन चुका था। पानीपत के खण्ड प्रलय में मराठों की अजेयता का जादू टूट चुका था। तिस पर स्वार्थ-कलह और विश्वासघात ने वहाँ पैर जमा लिए थे। अंग्रेज़ों के लिए यही स्थिति अनुकूल थी । परन्तु दक्षिण में इस समय दो उद्भट पुरुष जीवित थे-एक हैदर अली–दूसरा नाना फड़नवीस । किन्तु देश के दुर्भाग्य से दोनों ही परस्पर शत्रु थे। अंग्रेजों ने पहले मराठों और निज़ाम को संधि में बाँध कर हैदर अली को खत्म कर दिया, फिर निज़ाम ११२