पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११३

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, ओर मुसीबतों का जाल बिछा हुआ था । अंग्रेज़ पेशवा को ही शतरंज का मोहरा बना कर मराठाशाही को मात देना चाह रहे थे। और अन्त में लासवाड़ी के मैदान में उनकी इच्छा पूरी हुई। मराठा सरदारों के हौसले भंग हो गए। सिंधिया परकैच हो गया -और देश के बड़े भाग में आनरेबुल ईस्ट इण्डिया कम्पनी का अमल बैठ गया । पानीपत के खण्ड प्रलय ने, जिसमें दो लाख मराठे खेत रहे--मराठा संघ की उत्तर ओर की दीवार ढहा दी थी। उस समय पानीपत के रण- क्षेत्र को जाते समय मराठों के प्रधान सेनापति सदाशिवभाऊ ने घोषणा की थी कि वह पानीपत से लौट कर अपने पुत्र विश्वनाथ राव भाऊ को दिल्ली के सिंहासन पर बैठाएगा । पर सदाशिव राव की यह आशा पानी- पत की रुधिर सरिता में डूब गई। सदाशिव पानीपत से लौटे ही नहीं। वहीं उन्होंने अनन्त विश्राम किया। दिल्ली का निस्तेज बादशाह अब सिंधिया की तलवारों की छाया में फिर लाल किले में घुसा और पैंतीस बरस तक कठपुतली की भाँति नाचता रहा। कभी मराठों के इशारे पर, कमी वज़ीरों के, और कभी अंग्रेजों के । कैसा भयानक और दारुण नाचना पड़ा इस अभागे बादशाह को !! जब तक अवध का नवाब वजीर शुजाउद्दौला जीवित रहा, तब तक दिल्ली और आगरे में मुग़ल राज्य का कुछ प्रभाव रहा, पर उसके मर जाने पर नए सरदार रंगमंच पर पाए। पठानों और राजपूतों ने मिल कर लाल सोठ की लड़ाई में माधोजी सिंधिया को परास्त कर उसके जीवन- काल ही में बादशाह पर से उसका प्रभाव समाप्त कर दिया था। इसके बाद गुलाम क़ादिर पठान दिल्ली में सत्तारूढ़ हुआ। कभी यह शाह आलम का दास रह चुका था, और बादशाह से अपमानित हो कर किले से निकाल दिया गया था। सत्तारूढ़ होते ही उसने बादशाह और उसके परिवार को महलों से निकाल कर नौबतखाने में रहने को विवश किया।