पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/११४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

और स्वयं महलों में ठाठ से रहने, और तख्त पर बैठ कर दरबार करने लगा। इस समय खजाना खाली था। उसने बादशाह पर गुप्त खजाना और दफीना बता देने के लिए अत्याचार प्रारम्भ किए। और एक दिन भरे दरबार में उसने बादशाह से गुप्त खज़ाने की चाभियाँ माँगी । और जब बादशाह ने अपनी असमर्थता प्रकट की तो उसने वहीं बादशाह को भूमि में गिरा कर छुरी से उसकी आँखें निकाल ली। इसके बाद शाही बेगमात और शाहज़ादियों को बेइज्जत किया गया। उन्हें नंगा किया गया। क़िले के तहखानों और फर्शों को खोद कर तालाब कर दिया गया। उस समय उसने शाही खानदान पर जो अत्याचार किए-उनसे सारी दिल्ली में आतंक छा गया । अन्ततः दौलत राव सिंधिया ने पा कर इस आततायी से बूढ़े और अंधे बादशाह का उद्धार किया । फिर से उसे तख्त पर बैठाया। पर सारी सत्ता अपने हाथों में रखी तथा बादशाह को साठ हजार रुपया माहवार पैन्शन नियत कर दी गई । अभागे बादशाह को जीवन में कभी अंग्रेजों का प्राश्रित रहना पड़ता था, कभी मराठों का । पर सिंधिया और अंग्रेजों के दृष्टिकोणों में बहुत अंतर था । सिंधिया मुग़ल गौरव की आड़ में अपनी सत्ता को स्थिर करना चाहता था, पर अंग्रेज़, मुग़ल सत्ता के खण्डहरों पर अपना साम्राज्य खड़ा करना चाहते थे। परन्तु लार्ड वेल्ज़ली की दिग्विजयी नीति ने इस द्वेध शासन को सदा के लिए समाप्त कर दिया। और लार्ड लेक ने दिल्ली दखल करके दिल्ली शहर, लाल क़िला और शाह आलम तीनों को अपने अधीन कर लिया। अब अंग्रेज़ यह नहीं मानते थे कि हिन्दुस्तान का असली बादशाह शाहआलम है । यद्यपि उसे गद्दी से उतारने का समय अभी नहीं आया था, पर वे उसे कठपुतली से अधिक महत्व नहीं देना चाहते थे । वे धीरे-धीरे सब दरबारी अदब कायदे भंग करते जा रहे और पैन्शन घटाते चले जाते थे। इस तरह बादशाह के सभी शाही अधिकारों की कतरब्योंत जारी थी।