"तो यह दस्तावेज़ है, दस्तखत कीजिए।" कर्नल ने दस्तावेज़ नवाब के आगे रख दिया। जिसे पढ़ने-समझने की भी नवाब ने आवश्यकता नहीं समझी। उस पर अपने हस्ताक्षर कर दिए । कर्नल ने काग़ज़ अपने अर्दली कल्लू की ओर बढ़ाते हुए कहा-"तो नवाब, अब आप अपने डेरे पर आराम फर्माइए । मैं कल आप की सिफ़ारिश-कम्पनी बहादुर के गवर्नर जनरल साहब बहादुर की खिदमत में भेज दूंगा।" इतना कह कर कर्नल उठ खड़ा हुआ । उसके संकेत से दो अंग्रेज अफ़सर नवाब के पीछे आ खड़े हुए । नवाब ने उठते हुए कहा-“लेकिन हुजूर, उस गंदी जगह में मुझे कब तक कैद रखा जायगा । जब आप इस क़दर मेहरबान हैं मुझे कैद क्यों रखा गया है। खास कर अब तो मैं कम्पनी बहादुर का दोस्त और खादिम हो गया।" "तो बस, अब इस कैद का भी खात्मा समझिए । इतमीनान रखिए, बहुत जल्द आप को अपने घर जाने की इजाज़त मिल जायगी।" "लेकिन आखिर कब तक ?" "बस कलकत्ते से जवाब आने तक की देर है ।" "तब तक क्या मुझे उस दोज़खी हुसैनी की गंदी कोठरी में कैद रहना पड़ेगा ?हुजूर, मैं एक खानदानी नवाब हूँ, यह भी तो देखिए।" मेरा खयाल है विलायती शराब आप को वहाँ भी मिल जाती है ?" “खैर, शराब की तो मुझे शिकायत नहीं।" "फिर शिकायत किस बात की है ?" "वह पाजी, मक्कार आदमी है, रईसों से किस तरह सलूक करना चाहिए यह वह नहीं जानता । वह बेअदबी करता है कि जी चाहता है उसका खून पी जाऊँ।" कर्नल ने हंसकर कहा-"तो नवाब, उसे यह बात थोड़े ही मालूम है कि आप खानदानी रईस और नवाब हैं। यह बात तो क़सदन पोशीदा रखी गई है। मसलहतन । समझ गए ?" 6 १२४
पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१२१
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