फिर हम रईसों की औकात क्या ?" 'तो उन डाकुओं से तो अब आपका पिण्ड छूट गया। बादशाह सलामत भी आज़ाद हो गए। अब तो आपको खुश होना चाहिए।" "अल्लाह जानता है, हुजूर, कि मैं आप फिरंगियों की सोहबत में कितना खुश रहता हूँ, हमेशा फिरंगियों की शराब पीता हूँ। पोशाक भी वही पसंद करता हूँ। सिरफ गुफ्तगू का लुत्फ नहीं ले सकता, हुजूर, ज़बान आप लोगों की माशा अल्लाह जरी सख्त है। कम्बख्त जुबान पर चढ़ती ही नहीं।" "कर्नल ने हँस कर कहा-लेकिन नवाब, हमें तो आप ही की जबान और आप ही का लिबास पसन्द है, आपके यहाँ की औरतें भी उम्दा होती हैं।" "प्राक्खा, तो यह राज़ तो अब खुला, बन्देनेवाज़ । आपको शौक है तो बख़ुदा ज़रा सहारनपुर लौटने दीजिए, वह ताज़ा कमसिन चूज़े खिदमत में पेश करूं कि हुजूर भी अश-अश करने लगें।" "खैर, तो इस मसले पर फिर गौर किया जायगा। फिलहाल तो मैं आपको यह बताना चाहता हूँ कि मैं कम्पनी बहादुर की सरकार से सिफारिश करूँ कि आपको आपकी रियासत वापस मिल जाय, और आपके भाईबन्द रुहेले सरदारों पर भी आपका वही रुतबा कायम रहे जो आपके मरहूम दादाजान का था।" "निहायत ही पाकीज़ा और मुबारक खयालात हैं हुजूर, जरूर ऐसा ही कीजिए।" "तो इसके लिए नवाब साहब, आप को भी एक दस्तावेज़ पर दस्त- खत करना होगा । आप भी कम्पनी बहादुर की सरकार के नमकखार रहेंगे, और इन डाकू मराठों से कोई ताल्लुक नहीं रखेंगे।" "लाहौल विलावत, हमें भला उन डाकुओं से क्या सरोकार होगा। हम तो हमेशा के लिए कम्पनी बहादुर के खैरखाह-नमकखार और खादिम रहेंगे।" १२३