इन्तजारी ही कर रहा था । आप का हुक्म मुझे तीसरे पहर ही मिल चुका था।" "यह नशा कब बन कर आया है कर्नल ?' "इसी हफ़्ते, क्या अभी आप ने इसे नहीं देखा ?" "पहले ही पहल देख रहा हूँ।" "इसकी नक़ल तो मैं कल के खरीते में आप की खिदमत में भेज चुका हूँ।" "कल का तुम्हारा खरीता तो अभी मैं ने खोला ही नहीं कर्नल। कल दिन भर मैं गवर्नर-जनरल को खत लिखने में मशगूल रहा । इसके अलावा मेजर फ्रेजर को उस डाकू होल्कर के पीछे भरतपुर रवाना करना था। बस, इसी काम में मुझे बिल्कुल फुर्सत नहीं मिली । लेकिन यह नक्शा तो कर्नल टाड ने भेजा है न ?" "जी हाँ, मुझे याद आता है कि आप कई बार इसके मुतल्लिक़ ज़िक्र भी कर चुके हैं । उस दिन आप ही के हुक्म से मैं ने कर्नल टाड को याद दिहानी की थी, इस पर उसने यह दो कापियाँ भेजी थीं। एक यह है, दूसरी मैं आप की खिदमत में कल भेज चुका हूँ। क्या यह बहुत ही काम की चीज़ है माई लार्ड कर्नल ?' "प्रोह, बहुत ही काम की। बल्कि कहना चाहिए इसी के ऊपर हम अंग्रेजों की मौत और ज़िन्दगी निर्भर है।" "ऐसी बात ?" "बेशक, मराठों से हम दो बड़ी लड़ाइयाँ हार चुके। इनमें हमें कितनी जहमत उठानी पड़ी धन जन की कितनी बर्बादी और परेशानी हुई।" 'लेकिन ये लड़ाइयाँ हमने हारीं यह तो नहीं कहा जा सकता जनरल महोदय, सालवई की सन्धि कुछ हमारे हक़ में बुरी नहीं हुई, इस से हमें बीस साल साँस लेने को मिले। इसके अतिरिक्त वसीन की सन्धि में पेशवा को हमने परकैच कर दिया। वह तो सब से शानदार सन्धि पत्र 6 १२६
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