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पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१२४

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था। इस प्रकार से सारे ही मराठा सरदारों की स्वतन्त्रता उस से छिन "परन्तु मराठा शक्ति का खातमा तो हुआ नहीं। वसीन की संधि से ही तो चिढ़ कर और उसे मराठों का अपमान समझ कर उन्हों ने हम से दूसरा युद्ध छेड़ दिया ।" "परन्तु उसका परिणाम भी क्या बुरा रहा। इससे कम्पनी के अधिकृत प्रदेशों की संख्या बढ़ गई । मराठों की शक्ति घटी और भोंसले और सिंधिया ने सबसीडियरी सिस्टम अख्तियार कर लिया।" "हाँ आ, वह सब तो हुप्रा । लेकिन होल्कर उस युद्ध से अछूता बच गया, और अब हमारे गले का पत्थर बना हुआ है। देखते नहीं-वह कम्पनी के राज्य की ज़रा भी शान न मान कर अपनी ओर से अंग्रेजो की रक्षा में आई हुई राजपूत रियासतों को नष्ट भ्रष्ट कर रहा है, और उनसे चौथ उगाह रहा है। कर्नल मानसन को उसने देखो कैसी करारी हार दी । और फिर वह पाजी भरतपुर का राजा भी उससे मिल गया है। और दिल्ली घेर ली।" "पर शुक्र है खुदा का, कि आपकी बहादुरी और तलवार ने दिल्ली पर फ़तह हासिल कर ली।" "लेकिन इससे क्या ? जब तक होल्कर पूरी तरह नहीं कुचल दिया जाता, हमारी मुहिम पूरी नहीं होती। मराठा मण्डल का वही तो आखिरी काँटा रह गया है। उधर पेशवा बाजीराव भी उकस-मुकस कर रहा है। वसीन की संधि उसे चुभ रही है। मराठा सरदार उसे उकसा हैं । और सच बात तो यह है कि मराठा अब भी समूचे भारत में मराठा साम्राज्य स्थापित करने की चेष्टा कर रहे हैं।" "तो देखा जायगा, किस के बाजुओं में ताकत है । हिन्दुस्तान पर अंग्रेजों का साम्राज्य कायम होगा कि मराठों का ।" "अभी मुझे कुछ गम्भीर खबरें मिली हैं कर्नल, पेशवा ने पूना की रेजीडेन्सी पर आक्रमण किया है, और उसे जला दिया है । और रेजीडेन्ट १२७