पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१२८

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सिवाय अपने खास कुटुम्ब के और हर तरफ़ से उसके अधिकार परिमित कर दिए जाँय ।" "तो इस का मतलब यह कि सिवाय बादशाह की उपाधि के और सब स्वत्व-सत्ता-और अधिकार बादशाह से छीन लिए जाय ।" "बेशक कम्पनी सरकार का यही मन्शा है । उस बूढ़े-अन्धे और निकम्मे निर्बल नामधारी बादशाह के लिए क्या यही काफ़ी नहीं है कि उसे मराठों के पंजे से मुक्त करके हम ने दया करके उसके पुश्तैनी लाल क़िले आज़ाद छोड़ दिया है, कि वह जब तक चाहे ज़िन्दा रहे । और जब तक जिन्दा रहे, बारह लाख रुपयों की शानदार पैन्शन बैठे बिठाए पाता रहे- बस खत्म।" "क्या अब सिंधिया से कोई खतरा नहीं है ?" "खतरा अब और क्या हो सकता है । लसवाड़ी के मैदान में उसका सब दम खम चूर कर डाला गया । लेकिन कर्नल, लसवाड़ी में ये लोग शैतान की तरह लड़े, कहना चाहिए—बहादुरों की तरह लड़े। अगर हमने हमले का ढंग बहुत सोच-विचार कर इस रीति पर न किया होता कि हमें ज़बर्दस्त सेना के लिए भी, जो हमारे मुक़ाबले आ सकती थी, करना चाहिए, तो मुझे पूरा यकीन है कि दुश्मन की जो स्थिति थी-उस से हमारी करारी हार होती।" "ग़ज़ब हो जाता जनरल महोदय ।" "इसमें क्या शक है । मैं कह सकता हूँ कि मैं अपनी ज़िन्दगी भर कभी इतनी बड़ी विपत्ति में नहीं फंसा था। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूँ कि फिर कभी ऐसी मुसीबत में न पडूं ।" "लेकिन जनरल महोदय, यदि फ्रान्सीसी अफ़सर कैम्प का नेतृत्व करते तो कदाचित कुछ और ही परिणाम होगा।" "यक़ीनन हमें मुंह की खानी पड़ती कर्नल, मुझे तो पराजय सामने खड़ी ही दिखाई दे रही थी। कि इतने ही में मराठी सेना के नेता हम से आ मिले । हमारे बहुत-से अफ़सर और सिपाही अवश्य खेत रहे-पर