पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१२९

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भारत अन्त में फ़तह हमारी ही रही । यह फ़तह मामूली नहीं थी कर्नल, की निर्णायक लड़ाइयों में एक थी, क्योंकि लसवाड़ी की सेना उत्तरी भारत में मराठों की अन्तिम सेना थी। उस की तोपें जो हमारे हाथ लगी हैं, हमारी तोपों से कहीं उम्दा हैं।" "अाप को मुबारकबाद देता हूँ माई लार्ड ।" "बस, अब तो सिंधिया के खत्म करने में दो ही बातें हैं । एक ग्वालियर को दखल करना, जो सिंधिया की राजधानी है। दूसरे सिंधिया और उसके साथ वाली सेना को परास्त करना। ग्वालियर की रक्षा अम्बाजी के सुपुर्द थी, जो संदिग्ध-चरित्र का मनुष्य था । पर अभी हम उसे पटा ही रहे थे कि सिंधिया स्वयं वहाँ जा बैठा । लसवाड़ी की लड़ाई से जयपुर के राजा और उसके सब बदमाश, दगाबाज़ सलाहकारों की अक्ल ठिकाने लग गई थी। वे सब हमारे ताबे हो गए। और बरहानपुर में सिंधिया ने भी कम्पनी के साथ उसी तरह सब-सीडीयरी सन्धि स्वीकार कर ली, जिस तरह कि पेशवा स्वीकार कर चुका था।" "तब तो यह एक मार्के की फ़तह थी।" "इस में क्या शक है । इस से कम्पनी का भारतीय साम्राज्य इतना बढ़ गया है, जितना शायद किसी भी दूसरे युद्ध से नहीं बढ़ा था।" "यह गवर्नर जनरल महोदय की आशा से कहीं अधिक है। जिसका श्रेय माई लार्ड, अकेले पाप को है । मैं आप का अभिनन्दन करता हूँ जनरल महोदय ।" "धन्यवाद कर्नल, परन्तु जब तक यह चोर होल्कर जिन्दा है, हम सुरक्षित नहीं हैं । होल्कर की पराक्रमशीलता, उस का युद्ध कौशल, और महत्वाकाँक्षा देखते हुए हिन्दुस्तान में पूरी तरह शान्ति कायम करने के यह आवश्यक है कि उस की शक्ति को एक दम तोड़ दिया जाय ।" "बेशक, बेशक ! और इसके लिए अब हमें जी जान से कोशिश करनी है।" “यही बात है कर्नल, खैर, तो तुम बादशाह से सुबह ही मिल कर १३२