पृष्ठ:सोना और खून भाग 1.djvu/१३

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राष्ट्रों पर भी पड़ा, जो युद्ध में सम्मिलित नहीं थे। वास्तव में यह युद्ध राज्यों की राज्य-लिप्सा का युद्ध न था, राष्ट्रों की भूख का युद्ध था । यह संसार का प्रथम युद्ध था जो अकल्पित युद्ध क्षेत्र में फैल गया। उसका पश्चिमी क्षेत्र स्विटज़रलैण्ड तक पाँच सौ मील से भी कुछ अधिक लम्बा था । और पूर्वी क्षेत्र बाल्टिक सागर से कृष्ण सागर तक एक हजार मील लम्बे क्षेत्र में फैला हुआ था । इस युद्ध में दो विरोधी राष्ट्रों के गुट्ट परस्पर टकराए । एक वह गुट्ट था जिसके पास साम्राज्य और धन था। दूसरा वह, जो इनसे कुछ छीनना चाहता था। युद्ध का अन्त साम्राज्यों के पक्ष में हुआ । परन्तु साम्राज्य-सत्ता डगमगा गई। रूस में सर्वथा नवीन 'लाल क्रांति' हुई । युद्ध कोई सवा चार बरस चला । इसमें लगभग दस लाख अंग्रेज़ और चौदह लाख फ्रांसीसी युवकों की हत्या हुई। लग- भग तीस लाख पुरुष अंगभंग हो गए, और लगभग एक हजार अरब रुपया स्वाहा हो गया। इस युद्ध ने दुनिया के तीन टुकड़े कर दिए। दो टुकड़े तो दोनों अोर से लड़ने वाले, दोनों राष्ट्रों के थे, और तीसरा तटस्थ देशों का था । हारे हुए देशों की अर्थात् जर्मनी और मध्य यूरोप के छोटे-मोटे देशों की मुद्रा प्रणाली नष्ट हो गई थी तथा उनकी साख जाती रही थी। इससे वहाँ का मध्यम वर्ग बर्बाद हो गया। उधर सारे विजेता राष्ट्र अमेरिका के कर्जदार हो गए। इसके अतिरिक्त 'राष्ट्रीय-युद्ध-ऋण' का भी उन पर असह्य भार था । इन दोनों कों के असह्य भार से वे लड़खड़ा रहे थे। अब उनकी आशा केवल जर्मनी से मिलने वाले हर्जाने के रुपयों पर ही थी। पर जर्मनी सोलहों आना दिवालिया हो गया। उस समय केवल अमेरिका में ही रुपयों की बाढ़ आ रही थी। परंतु सौदों-सट्टों ने अमेरिका की सम्पन्नता का जल्द ही दिवाला निकाल दिया। और सारे संसार के साथ अमेरिका भी मंदी के चंगुल में फंस गया । उन दिनों अमेरिका में